जिनेश्वर पद संग्रह [प्रथम भाग] | Jineshwar Padsangrah [Volume 1]
श्रेणी : काव्य / Poetry, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जिनेश्वरकी छवि, पूजो शिवमगचारी ।
नाथकी० ॥ ४ ॥
(१७)
घड़ी दो घी मंदिरजीमें जाया करो, ३
एजी जायाकरो, जी मन लगाया करो, घटी
॥ टेर ॥ सव दिन घर धंदामें खोया, कछ तो
धर्मम बिताया करो । धडी०॥ १॥ पूजा
सुनकर शास्त्र भी सुणल्यो, आध घडी तो जाप
में विताया करो ॥ घडी० २ ॥ कहत जिने-
सवर › सुन भविप्रानी, जावत मनको माया
करो ! घडी ० ॥
(१८)
खानी राग भेरथी में ।
अपना भाव उर धरना प्यारेजी, अपना
भाव सुखदान वडा | अपना भाव जिनने उर
धारा, तिन पाया शिव थान बढा॥ टेर ॥ नर
भव. पाय चतुर मति चूके, यह मोका हितदान
बडा। जो करना सो निजहित करले, चिता-
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