जिनेश्वर पद संग्रह [प्रथम भाग] | Jineshwar Padsangrah [Volume 1]

Jineshwar Padsangrah [Volume 1] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १५ ) जिनेश्वरकी छवि, पूजो शिवमगचारी । नाथकी० ॥ ४ ॥ (१७) घड़ी दो घी मंदिरजीमें जाया करो, ३ एजी जायाकरो, जी मन लगाया करो, घटी ॥ टेर ॥ सव दिन घर धंदामें खोया, कछ तो धर्मम बिताया करो । धडी०॥ १॥ पूजा सुनकर शास्त्र भी सुणल्यो, आध घडी तो जाप में विताया करो ॥ घडी० २ ॥ कहत जिने- सवर › सुन भविप्रानी, जावत मनको माया करो ! घडी ० ॥ (१८) खानी राग भेरथी में । अपना भाव उर धरना प्यारेजी, अपना भाव सुखदान वडा | अपना भाव जिनने उर धारा, तिन पाया शिव थान बढा॥ टेर ॥ नर भव. पाय चतुर मति चूके, यह मोका हितदान बडा। जो करना सो निजहित करले, चिता-




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