गुलदस्तए - नग्रमात | Guldastaea Nagramaat

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Guldastaea Nagramaat by प्रोफेसर बड़े आगा साहब - Profesar Bade Aaga Sahab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र ) सबसे पेश्तर उस्ताद कालखाँ, लाहोरवाले से गाना सीखा | उस्ताद कालखाँ एक लहीम वो शहीम पंजाबी गवेए थे । यह जब गा चुकते, तो अदसर जाननेवाले पूछते कि उस्ताद, यह क्या आपने मलार गाई थी ? उस्ताद जवाब देते-हाँ, मलार आर बहुत सही मलार | इससे यह गुमान होता था कि उस्ताद ने बहुत-से लोगों को मल्लार गाते सुना होगा সী उन लोगों से गलतियाँ भी हुई होंगी । इसके बाद राजा साहब ने उस्ताद नज़ीरखाँ मुरादाबादवाले से भी गाना सीखा । उस्ताद- नज़ीरखाँ बड़ ऊँचे गवेयों में से थे। राजा साहब की सोहबत में बेठनेवालों के नाम यह हैं--उस्ताद बड़े मुन्नेखाँ मरहूम, उस्ताद छोटे मुन्नेखाँ मरहम, महाराज कालका बिन्दादीन मरहूम, उस्ताद सादिक़अलीखाँ मरहूम, उस्ताद दूल्हेखाँ मरहूम, बाक़रहुसेन मरहूम, बच्छनखाँ मरहूम, नसीरखाँ, नसी रखाँ हेदराबादवाले वग़ेरा राजा साहब की सोहबत में मीर मेंहदीहसेन मरहम, सोज़खान मीर सज्जादहुसेन सोज़खान मरहम, मीर अच्छेसाहब, नादिर साहब हाल मुलाज़िम हुगली इमामबाड़ा, मीर मनभूसाहब सोज़खान हाल मुलाजिम द्रबार रामपुर । हमने मीर मनमूसादव से एक अरसे तक्‌ सोजखानी सीखी है। मीर ज़िन्दे रज्ञा वगरा ओर शुरकाए-शहर रजा साहब गोकि नीची आवाज़ में गाते थे, मगर किसी गवयेकी तान सुरकी या कैसी दी जुश्किल तरीव हो, उसको निदहायत ही आसानी से कापी कर लेते थे । उस्ताद छोटे मुन्नेखाँ मरहूम




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