प्राचीन जैन स्मारक | Prachin Jain Samarka

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Prachin Jain Samarka by किसनदास कपाडिया - Kisandaas kapadiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) मुफायें भी हैं| इनपरसे अब या तो नेनधमंकी छाप ही उठ गई या जनियोंने उनको सर्वेभा भुला दिया है | ऊपर हमने जो बातें कहीं हैं उन सबके प्रमाण प्रस्तुत पुस्त - कम पाये जांयगे । धमहितैषी ओर उपसंहार । जैन इतिहासके प्रेमियोंको इस पुस्त- कका अच्छी तरह अवलोकन करना चाहिये इससे उनको अपना प्राचीन गौरव विदित होगा जर अपने अधःपतनके कारण सूझ पड़ेंगे। उनको यह बात नोट करना चाहिये कि कहां२ पुराने जेन मंदिर व मंदिरोंके ध्वं- सावरोष है, कहां २ जनमेदिर शैवमंदिरों और मसनिदोंमें परिवर्तित कर लिये गये हैँ ओर्‌ कदां २ भन गुफाये अरक्षित अवस्थामें हैं | जिनको भ्रमण करनेका अवसर मिले वे उक्त स्थानोंको अवश्य देखें और तत्सम्बंधी समाचार प्रकाशित कराये | बम्बई प्रांतमें अनेक स्थानों मेसे पाटन, ईडर आदिमें बड़े२ प्राचीन शास्त्र भंडार हैं । इनका सूक्ष्म रीतिसे शोध होना आवश्यक है| भारतवर्षके नेनि- योंकी लगभग आधी जन संख्या बम्बई प्रांतमें निवास करती है | इन भादयोंका सर्वोपरि कतेव्य है कि वे इस पुस्तककी सहायतासे अपने प्रांतकी धामिक प्राचीनताक्ो समन्ते ओर्‌ नेनधमेके पुनरुत्था- नमे भाग ठ । पुस्तकके रेखकका यही अभिप्राय है ! गांगई । हीराखल कातिक वदी ३० » [ हीराछाल जैन एम ० ए० सं ० प्रोफेसर नि. सं. २४९१ किंग एडवड कालेन अमरावती-बरार 1




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