प्राचीन जैन स्मारक | Prachin Jain Samarka
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३)
मुफायें भी हैं| इनपरसे अब या तो नेनधमंकी छाप ही उठ गई
या जनियोंने उनको सर्वेभा भुला दिया है |
ऊपर हमने जो बातें कहीं हैं उन सबके प्रमाण प्रस्तुत पुस्त -
कम पाये जांयगे । धमहितैषी ओर
उपसंहार । जैन इतिहासके प्रेमियोंको इस पुस्त-
कका अच्छी तरह अवलोकन करना
चाहिये इससे उनको अपना प्राचीन गौरव विदित होगा जर
अपने अधःपतनके कारण सूझ पड़ेंगे। उनको यह बात नोट
करना चाहिये कि कहां२ पुराने जेन मंदिर व मंदिरोंके ध्वं-
सावरोष है, कहां २ जनमेदिर शैवमंदिरों और मसनिदोंमें परिवर्तित
कर लिये गये हैँ ओर् कदां २ भन गुफाये अरक्षित अवस्थामें हैं |
जिनको भ्रमण करनेका अवसर मिले वे उक्त स्थानोंको अवश्य देखें
और तत्सम्बंधी समाचार प्रकाशित कराये | बम्बई प्रांतमें अनेक
स्थानों मेसे पाटन, ईडर आदिमें बड़े२ प्राचीन शास्त्र भंडार हैं ।
इनका सूक्ष्म रीतिसे शोध होना आवश्यक है| भारतवर्षके नेनि-
योंकी लगभग आधी जन संख्या बम्बई प्रांतमें निवास करती है |
इन भादयोंका सर्वोपरि कतेव्य है कि वे इस पुस्तककी सहायतासे
अपने प्रांतकी धामिक प्राचीनताक्ो समन्ते ओर् नेनधमेके पुनरुत्था-
नमे भाग ठ । पुस्तकके रेखकका यही अभिप्राय है !
गांगई । हीराखल
कातिक वदी ३० » [ हीराछाल जैन एम ० ए० सं ० प्रोफेसर
नि. सं. २४९१ किंग एडवड कालेन अमरावती-बरार 1
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