एक ही दुनिया | Ek Hi Dunia

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Ek Hi Dunia by जगन्नाथप्रसाद मिश्र - Jagannath Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एल अलामीन ३ रूप ग्रहण कर लिया था। केरोमें कुछ यूरोपियन छोग अपना बोरा-बसना बाँधकर मोटरसे दक्षिण या पुर्वंकी ओर भागनेकी तेयारी कर रहे थे। इस समय मुझे राष्ट्रपति रूजवेल्टकी चेतावनीका स्मरण हो आया। আাহিবাতলব विदा होनेके पूर्व उन्होंने मुझसे कहा था कि संभव है कि मेरे करो पहुँचनेके कबछू ही वह जर्मनोंके कब्जेमें आ जाय। हमने इस तरहकी कहानियाँ भी खनीं कि नील नदीकी घाटीमें उसकी अन्तिम रक्षापंक्तिको छिन्नभिन्न करनेकेलिये नात्सी सेनिक पेराशूटसे वहाँ उतरे हैं। लोगोंमें आमतोरसे यह विश्वास फेछ गया था कि ब्रिटिश आठवीं सेना मिखको विरङ्कर खारी करके फिलस्तोन ओर दक्षिणी ओर छदान ओर केनियामें हट जानेकेलिये तेयार हो रही है। स्वभावतः मेंने इन सब खबरोंको रोकनेकी कोशिश की । ओर इसके- लिये केरो हुनियाकी सबसे खराब जगह है। किन्तु वहाँ अच्छे छोग मी थे। भिमं संयुक्त-राष्ट अमेरिकाके दूत अलेकजेण्डर कक भविष्यके सम्बन्धमे यद्यपि आशाचान नहीं थे ; किन्तु उनके साथ काफी देर तक बातचीत करके मैने जाना कि युद्धकी क्षण-क्षणमें बदलूनेवाली स्थितिको काबूमें रखनेकेलिये जो महान कोशल दिखाया जा रहा है आर वहं जो कुछ हो रहा है, उसका उन्हें विस्तृत ज्ञान है, ओर अपने इस ज्ञानको छिपानेकेलिये ही उन्होंने जानवुझकर नेराश्य धारण करनेका बहाना किया है। केसोेमें ओर छोग भो थे, जो स्थितिकी दीक-ठीक जानकारी रखते थे। इनमें एक थे मिस्रके घोर ओर हँसमुख प्रधानमंत्री नहस पाशा, जिनमें हास्य एवं जीवनके रसास्वादनकी मात्रा इतनी अधिक थी कि मेंने उनसे कहा कि यदि वह अमेरिका आयें ओर किसी पदुकेलिये उमीदवार हों, तो निस्सन्देह वह एक जबदसूत प्रतिहन्द्द . सिद्ध होंगे।




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