तत्त्व समुच्चय | Tattv Samucchay
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
१ ग्यारह अंग (ऊपर निदिष्ट) =
२. बारह उपांग--(१) मौपपातिक सूत्र (र) रायष्मेणो (३) जीवाभि-
गम (४) पण्णवणा (५) सूर्यप्रज्ञप्ति (६) जम्बुद्वीप प्रश्नप्ति (७) चन्दपरज्ञप्ति
(८) निस्यावलो (९) कल्पावतसिका (१०) पुष्पिका (११) पृष्प चुलछिक
(१२) वृष्णिदशा । +
३ दश प्रकीणेक--(१) चतु शरण (२) आतुर प्रत्या्यान (३) भक्त
परिज्ञा (४). सस्तार (५) तन्दुल वैचारिक (६) चन्रकवेन्यक (७) देवेन््रस्तव
(४) गणिविद्या (९) महाप्रत्यास्यान (१०) वीरस्तव ।
४. छह छेदसूअ--(९१) निगोथ (२) महानिशीय (३) व्यवहार (४)
आचार दशा (५) कल्प (६) पंचकरप (या जीतकल्प)
५ चार मूलसुत्न -(१) उत्तराध्यवयन (२) आवश्यक (३) दणचैकाछिक
(४) विडनिरयुक्ति
६. दो चूटिकासूत्र- (१) नन्दीसूत्र (२) अनुयोगद्वार ।
इस आगम को दिगम्बर सम्प्रदाय प्रामाणिक नही मानता । ग्यारह अग स्वय
उन्ही में दिये हुए वर्णन के अनुसार विषय व विस्तार दोनो दुष्टिमोसे उस रूपमे
सौ नही हं जिस रूपभे द्वादशाग श्रुत की प्रथम वार रचना हुई थो । विशेषतः ठानाग,
समवायाग और ननन््दीसूत्र में पाये जाने वाले वर्णन वर्तमान आगम से व परस्पर भी
एक रूप नहीं है । वर्गीकरण के विपय में भी मतभेद पाया जाता है, जैसे छेद
सूत्रों में पचकल्प के स्थान पर कटी जीतकत्प का मान भी पाया जाता है । इस
प्रकार विकल्प से आये हुए ग्रथो को सम्मिलित करने से कुछ आयम ग्रथों की
सख्या ५० तक भी पहुच जाती हैँ । कितने ही ग्रथो के कर्ताओ के नाम भी मिलते
ठँ । जैसे--चतुर्थ उपाय अज्ञापना के कर्ता इयामाचाये, जीतकहप के कतां जिनभद्र,
पचम छेदसूत्र कल्प के कर्ता भद्रवाहु, तृतीय मूलसूत्र वशवैकाडिक के कर्ता
सेज्जमव या स्वयमभव, एव नन्दीसूत्र कै कर्ता स्वय देवधिगणी 1 भाषा व नैरी
की दृष्टि से भी ये रचनावें भिन्न भिन्न काल की सिद्ध होती है। जैसे, आचाराग
विषय, भाषा व शैली आदि सभी दृष्टियों से अन्य रुचनाओ की अपेक्षा अधिक
प्राचीन सिद्ध होता हूँ । उत्तराध्ययत में भी अधिक प्राचीन रचनाओ का समावेश
पाया जाता हूँ। इस प्रकार स्पष्ट हैँ कि इन आगम रचनाओ नें प्राचीन अंग খাঁ
है, तथा उन में स्वय देवधिपणी के समय तक की रचनायें भी समाविष्ट है 1
आगमो की भाषा व अन्य प्राकृत
इन ग्रथो की भाषा ^ भाषे या “अधं॑मागधी ' कहराती है | आये परिवार
की भारतीय भाषाओं में सबसे प्राचीन भाषा वेदों में पाई जाती हैं। वेदो की
नाया का सस्कार होकर सस्कृत भापा का निर्माण हुआ । और बोलचाल मे प्रचलित
लोकभाषा * प्राकृत ” कहछाई जिसके देशभेदानुसार अनेक प्रभेद हो गये । मगध
देश में प्रचलित भाषा सागधी कहराई। शूरसेन अर्थात मथुरा के आसपास के
प्रदेश में प्रचलित प्राकृत का नाम पड़ा औरसेनी । और महाराष्ट मेँ प्रचित
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