ग्रामीण अर्थशास्त्र | Gramin Arthshastra

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Gramin Arthshastra by श्रीयुत बृजगोपाल भटनागर - Shriyut Brijgopal Bhatanagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिहुस्तान में भिन्न भिन्न प्रकार के गाँव ९ यह चौपाल बहुधा एकं नौम, पीपल या जड़ के पेड़ के नीचे एक चौरस उठी हुईं ज़मीन होती है या किसी मंदिर का रओंगन होता है। इसी जगह याँव के बढ़े-बूढ़े लोग रोज़ शाम को इकट्ठा होकर आमसबंघी विषयों पर वाद-विवाद करते हैं | यहीं पर पुलिस का सब-इंस्पेक्टर या उस गोव का पटवारी उन देहाती लोर्गो को श्रपना प्रयुत्व दिखल्नाता है । ओर यदी पर कभी कोई रमता योगी अपने पवित्र चरणों से उनके गोव को प॒चित्र कर गववालो को संत-समागम का स्वर्गीय सुख देता है | फिर हर गाँव का एक विशेष देवता होता है, जैसे दुहा देव, भोड देव, मेंसा- सुर, धननेश्री, महामाया इत्यादि । कहीं कहीं इनके मदिर होते हैं और कहीं कहीं नहीं । लोगो से आबाद हो रहा है तो वे लोग दूसरी जगह की तलाश मे निकले और उसको आबाद कर लिया । ऐसा कई जगह होता आया है और अब भी कहीं कहीं ऐसा होता है। ऐसा उस समय हुआ है जव कि सरकार या कोई बड़ा तालुकेदार गेर-आवाद जमीन को--जिस पर अब तक खेती नही की गई थी --किसी उत्साही या उद्यमी किसान को खेती के लिए दे देता है। मिस्टर बेनेट के शब्दो में ऐसे गाँव भिन्‍न मिन्‍न जाति के कुछ लोगो का एक समुदाय ही हैं। ये लोग गाँव की सीमा मे रह कर खेती-बारी के जरिये अपनी जीविका चलाते है। आपस में एक दूसरे को रक्षा के विचार से या उस जमीन पर अधिक दिनो तक रहते रहते उससे और वहाँ के रहने वालो से प्रेम हो जाने से या वहाँ के एक जमीदार या मालगुजार के नीचे रहने से लोग एक प्रकार से इकटुं होकर रहते है । ऐसे गाँत्रों में जमीदारों के बीच जमीन का बटवारा करने मे पदटीदारी की अथा ही ज़्यादातर प्रचलित है। पर साथ ही ऐसे भी कुछ उदाहरण मौजूद है जाँ कि एक ही आदमी द्वारा बसाये हुए गाँव के सभी लोगो मे बरावर वरावर जमीन बाँटने की प्रथा हो गई है या यह बटवारा वहाँ के रहनेवालो के धन या उनके हल ( खेती करने की शक्ति का एक माप है ) के अनुसार होता है । देखिए वेडन पाल लिखित “लैंड सिस्टम अव्‌ त्रिरिर इडया লাম ৭, ক্গীহ ছি इडियन विल्लेज कम्यूनिरी ।*




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