अमरीका की राजनीतिक पद्धति और उसकी कार्य विधि | 1380 America Ki Raneetik Paddhati Aur Uski Karya Vidhi (1930)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) बुडरो विल्सन ने अपनी पुस्तक “हिस्ट्री आँव द अमेरिकन पीपल प्रयत्‌ अमेरिकी लोगो का इतिहास” में अन्दाज लगाया है कि आरम्भ के दिनो में ४० लाख में से केवल १ लाख २० हनार व्यक्तियो को मत्त देने का भ्रधिकार रहा होगा 1 भ्रटारहूवी शताब्दी मे यह्‌ पद्धति भी भयानक जनतन्त्री समभी जाती थी | अगले सौ वर्षो मे मत देने का अधिकार अधिकाधिक प्रकार के लोगो को दिया जाता रहा। पश्चिम की ओर को सीमान्त का शीघ्र विस्तार होता गया और ज्यो- ज्यो नये राज्य घनते गये त्यो-त्यो सीमान्तवासी लोगों का प्रभाव देश को समानता की ओर धकेलता गया । सनु १८६० तक प्राय सभी राज्यो ते छकीस॒ वर्षं से ऊपर आयु के सब गोरे लोगो को मताधिकार दे दिया था । गृह युद्ध के पञ्चात्‌ संविधान में नीग्रो लोगो को भी मताधिकार देने का संशोधन कर दिया गया, परन्तु कई दक्षिणी राज्यो ने नीग्रो लोगो के मत देने के मार्ग में बहुत सी वाधाएँ सफलता पूरव॑क खडी कर रक्खी ह । सन्‌ १६२० मे संविधान मे एक श्रौर संशोधन करके ल्लियो को भी मताधिकार दे दिया गया। सेनेट ( उच्च सभा ) को हाउस ( प्रतिनिधि सभा ) की अपेक्षा जनता से अधिक दूर रखते का विचार था । इसलिए संविधान मे यह विधान रक्वा गया था कि प्रत्येक राज्य के दो सेनेटर उसके विधान-मण्डल द्वारा छुने जायें। इसका फल यह हुआ कि सेनेंट साघारणतया हाउस की श्रपेक्षा अधिक परिव्तन-विरोधी रहने लगी । सेनेट मे बहुधा सम्पन्न व्यक्ति होते थे अ्रथवा ऐसे व्यक्ति होते थे जिन्हें वडे- बडे व्यापारियों और महाजनो के साथ घनी सहानुभूति होती थी। परन्तु जनतस्त्र को अभ्रधिकाधिक जन-प्रतिनिधिक बनाने का दवाव बढ़ता गया | परिवतेन-विरोधियो के विरोधी राजनीतिक लोगो ने भी इस परिवर्तन को बढावा दिया । फल यह हुमा कि सन्‌ १६१३ मे फिर सविधान का संशोधन किया गया और राज्यो की जनता को अपने सेनेटर सीधे चुन लेने का अधिकार दे दिया गया । . सन्‌ १६१३ से सेनेटरो की स्थिति, श्रपते राज्य के शासन का प्रतिनिधित्व करने के लिए वाशिंगटन में भेजे गये राजदूत या प्रतिनिधि की न रहकर, बहुत च दे का्रस-सदस्यं जैसी हो गयी है जिसकी पद-मर्यादा बढा दी गयी हो ।




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