मोक्ष के साधकों के चरण कमलों के सादर समर्पित | Moksh Ke Sadhakon Ke Charan Kamalon Ke Sadar Samarpit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना १७
रहते थे । एेसे भक्त से सेवा लेने में आप प्रसन्न होते जो शुद्ध भाव
से दे, मोक-साधन मे कटिवद्ध हो, उत्साही हो श्रौर निष्काम भाव
से सेवा करता हो |
रमते राम
संन्यास का भाव आप में पूर्ण ख्पसे भरा था। रमते राम
की तरह बने बनाये मकान में ठहरने की इच्छा रहती थी। कहीं
कुटी को ठीक भी किया ता 7००ए०7४7ए ( चलाऊ तौर से )
काम के लिये ही। प्राय: जब उसकी अवस्था सुधरने लगती, तो
आपका उधर आना ही चन्द हों जाता । इस श्रकार आप पूर्ण
स्वतन्वता से विचरते रहे, किसी उलमन मे अपने सनको अटकाना
भ, (य
आपके लर्य असम्भव था ।
सरलता
आपकी रहन-सहन में किसी प्रकार का आडम्वर नहीं था।
संन्यास के वाह्य आडम्बरों से आपका चित्त सबंथा मुक्त था।
कपड़े का रँगना तो दूर रहा, उसे बहुत सफ़ा रखना भी श्राप एक
व्यसन सममते थे। आपने बाहरी रंगठंग पर कभी ध्यान नहीं
दिया। लोग मेरे को क्या सममेंगे इस ओर आपका ध्यान कभी
गया ही नदीं । इससे वनावट के पुजारियो को वडा भ्रम हो जाता
था । सदी द्वोती तो बाल बढ़ने ही देते, गरमी अथवा खुजली होने
लगती तो कटवा देते । खाने मे कष्ट होता तो केवल मूर्वा के वाल
कैंची से काट लेते । सरलता की तो श्राप मृत्ति दी ये । बनावट और
आडम्बर से आपको वद धरुणा थी, दूसरे को प्रभावत करने.का
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