जागृति का संदेश | Jagriti Ka Sandesh

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Jagriti Ka Sandesh by स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) ऐसा पुरुष था, जिसका सारा जीवन ही एक आदश महासभा का स्वरूप था। सज्जनो, हसारे शाद्यों ने निगु ण॒ ब्रह्म ही फो हम लोगों का अन्तिम लक्ष्य माना है। ओर ईश्वर की इच्छा से यदि सभी: लोग उस निगुण जह्य को प्राप्न करने मे समर्थं होते, तो वडा अच्छा होता । लेकिन जब ऐसा सम्भव एक सगुण आदर्श नहीं तो हम मनुष्य जाति के लिए एक की आवश्यकता. सगुण आदर के होने से एक दस काम नहीं” चल सकता। इस प्रकार किसी आदश महापुरुष का विशेष अनुरागी होकर उसके भाण्डे के नीचे खड़े- हुए बिना कोई जाति उठ नहीं सकती और न बड़ी हो सकती है। यहाँ तक कि काये भी नहीं कर सकती। राजनेतिक, यहाँ तक्षः कि सामाजिक वा व्यापारिक जगत का भी कोई आदशें पुरुष” कभी सर्वेसाधारण भारतवासियों के ऊपर प्रभाव नहीं डाल सकता । हम लोग चाहते हैं. आध्यात्मिक आदशें। লন अध्यात्म राज्य के पारदर्शी महापुरुषों के नाम पर हम लोग एकन्न” सम्मिलित होना चाहते हैं, सभी मत्त होना चाहते हैं। धमवीर- इए बिना हम लोग किसी को आदशं नदीं सान सक्ते । “राम कृष्ण परमहंस में हम लोग एक ऐसे ही धर्मवीर-ऐसे द्वी एक आदश को पाते हैं । यदि यह जाति उठना चाहती है, तो मैं” निश्चय पूवक कडवा हू कि इस नाम पर सब को मतबाला दोना चाहिये | राम॑कृष्ण परमहंत के सस्वन्ध सें मैं, तुम या दूसरा




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