जीवन चरित्र महात्मा दूलनदास जी का | Jeewan Charitra Mahatma Dulan Das Ji Ka

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Jeewan Charitra Mahatma Dulan Das Ji Ka by पृथ्वीपाल सिंह - Prithvipal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपदेश का अंग & सुखसन पहलेंगा सहज त्रिछेना, सुख से।वे। को करै मने '॥३॥ दूलनदास के साई जगजीवन, के आबे यह जगसु पने ॥४॥ 1 शब्द्‌ ५॥ जागो चेत नगरमे रहे! रे ॥ टेक + দল रंग रस ओदृ चद्रिया, मन तसबीहूर गहा रे ॥१॥ तर खा नामहि की घुनि, करम भरम सव घो २।२॥ सूरत বাটি भहा सत मारग, भेद न प्रगट कहि रे ५३२॥ दुलनदास के साहू जगजीवन, मत्रजल पार करो रे ॥४॥ ॥ शब्द्‌ ६॥ अद्लेह यहि देसवाँ, मनवाँ के महल घ॒र्वतेह। सत्तगुरु घाट काया के सोद्न, नाम साबन लपंहेतेह ॥१॥ धेये मर्लाह मिद्दे कस कलिमल, दुविधा दरि बहैतेह। ज्ञान विचार ताहि करि घोवी, प्रेम के पाट घनैतेहु ॥२॥ स्वारथ छह नाम आसा घरि, विषय चिकार वहैतेहु । भ्रम ताज अगन सगन करिमनतं, भवसागर तरि जेतेहु॥३ सुत तिय परिवारहिं अरू घन तजि, इनके बस न भलेतेह। अनमिलना मिलना काह से, हित अनहित न चिन्हैतेह॥९ चौरासी चित मोह बिसरतेह, हरि पद नेह लगैतेह.। दलनदास बंदगो गावे, बिना परिखम जेतेह ॥ ४ ॥ ॥ शद्धभ ७ ॥ अब काहे भलहु हो माह, तें तो सतग॒रु सबद समइलेह॥ टेक ना प्रश्न मिलिहे जोग जाप तें, ना पथरा के पजे । ना प्रभु मिलिहै पठआँ पखारे, ना काया के मजे ॥ १॥ (१) क्रौन वरज सकाः है । (२) माला । ৭ .




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