नकद धर्म | Nakad Dharm

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Nakad Dharm by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) लय चिर्के गिराद, परदे डाल दे,द्वार वेद करद, खिड़- केयं लग, कसे चद्‌ करद्‌ तो प्रकाश तत्काल ज्ञाता रहेगा और धत दही अधर दहो जयिगा, दाय ! हम लोग ने हिंदुस्तान में यह कुश्लि नीति की चाल स्यौ स्वीकार की.? ১৯ উন লন অন্তর নুহ सुलिमां खुदतर । खरे वतन अङ्‌ सुभ्बल भं सहां खुदतर ॥ दिश का प्रेम छुलमान के ५श से अच्छा । देश का काटा चाह्चकड़ और स्याजयो से अच्छा | कह कर आप तो काया जाना र देश को कारां का स्थान घना देना देश भक्ती नहीं है ॥ भ्रायः एक दी प्रकार के वृन्त जव इकट्टे सघन छुडौ म उपञ्त है तो सब निधल रहते है इन मे से किस फो तनक पृथक यो दौ तो. बहुत पुष्ट आर लस्वरा हो जाता है यही दशा जातियों की दे काध्मीर फे विषय भे कहते ह ॥ , अगर फिरदोख बर रूप जमीन अस्त । षुगीनस्तो श्शनस्तो हमीनस्त । यादे इस पृथ्वी पर वेकुण्ठ ह तो यही है यही दि ।




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