सुखी जीवन | Sukhi Jeewan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शान्तिका साधन
सुमति-बहिन ! मैं कैसे अपनेको आनन्दरूप जानूँ আম.
ही कोई युक्ति बतानेकी कृपा करें |?
शान्तिदेवी-'चहिन ! संसारकी जिन चीजोंकी ओर तुम्हारा
चित्त खिंचता है उनके ख़रूपको जानकर उनसे अपनेको बचाये
रखो । तुमको मूख्से ही उनमें सुन्दरता ओर सुख भासते हैं |
असख्म उन विषर्योकी इच्छा ही जीवकी शतु है } ओर सारे
दुःखकी यही जड़ है | पहले कामना होती है! जव वह पूरी
नहीं होती तो क्रोध आता है. और यदि पूरी हो जाती है तो छोम `
और मोह बढ़ जाते हैं | बस, यह काम, क्रोध, छोम और मोह ही
जीचके प्रवल शत्रु हैं | इन्हींके वशमें हो जानेसे अपना आनन्दखूप
सु° जीर २-
४
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