सुखी जीवन | Sukhi Jeewan

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Sukhi Jeewan by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शान्तिका साधन सुमति-बहिन ! मैं कैसे अपनेको आनन्दरूप जानूँ আম. ही कोई युक्ति बतानेकी कृपा करें |? शान्तिदेवी-'चहिन ! संसारकी जिन चीजोंकी ओर तुम्हारा चित्त खिंचता है उनके ख़रूपको जानकर उनसे अपनेको बचाये रखो । तुमको मूख्से ही उनमें सुन्दरता ओर सुख भासते हैं | असख्म उन विषर्योकी इच्छा ही जीवकी शतु है } ओर सारे दुःखकी यही जड़ है | पहले कामना होती है! जव वह पूरी नहीं होती तो क्रोध आता है. और यदि पूरी हो जाती है तो छोम ` और मोह बढ़ जाते हैं | बस, यह काम, क्रोध, छोम और मोह ही जीचके प्रवल शत्रु हैं | इन्हींके वशमें हो जानेसे अपना आनन्दखूप सु° जीर २- ४




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