प्रेमचंद के उपन्यासों में सामायिक परिस्थितियों का प्रतिफलन | Premchand Ke Upanyason Mein Samayik Paristhitiyon Ka Pratifalan

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Premchand Ke Upanyason Mein Samayik Paristhitiyon Ka Pratifalan by सरोज प्रसाद - Saroj Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमुख 1 ७ श्पने उपन्यासों में धर्म के लोक-प्रचलित रूप का विरोध कर उसके मर्म का उद्घाटन जिन उपन्यासो में किया है उतका मैंने इस श्रध्याय में श्रध्ययत किया है । भ्रष्टम श्रध्याय मे सामाजिक जीवन की उन कतिपय समस्याग्रों का श्रध्ययन किया है जिन्होंने हिन्दू समाज को विषत श्रौर फलतः दुवंल कर॒ रखा धा । प्रेमचन्द के सामने सामाजिक जीवन की जो समस्याएँ मुँह वाये खड़ी थीं वे कुछ उनके ही जमाने में खड़ी नहीं हो गयी थीं । वे हमारे सामाजिक जीवन का श्रभिशाप हैं । १९वीं शती के सुधार आन्दोलन के युग से ही उनपर प्रह्मर किया जा रहा था | प्रेमचन्द ने उन समस्याप्रों में से जिन समस्याझ्रों को प्रमुख समभा था उनकी प्रस्तुति उन्होंने अपने भिन्‍न- भिन्‍न सामाजिक उपन्यासों में की थी | मैंने उन उपन्यासों के प्रमाए पर दहेज-समस्या, विधवा-समस्या और वेश्या-समस्या के सम्बन्ध में प्रेमचन्द की हृष्टि को स्पप्ट करमे की चेष्टा इस भ्रध्याय में की है । यहीं मध्यवर्ग की उन समस्याश्रों का भी विवरण प्रस्तुत किया गया है जिनके परिप्रेक्ष्य में ही इस मध्यवर्ग का सच्चे श्रर्थ में श्रध्ययन किया जा सकता है । प्रेमचन्द के युग में नारी-समाज में जागरण की एक लहर झ्रायी थी । उस लहर के सम्बन्ध में प्रेमचंद की निश्चित राय है। मैंने उसे मी पहचानने की चेष्टा की है । नवम्‌ अ्रध्याय में प्रेमचंद के उपन्यासों में समसामयिक श्राथिक परिस्थितियों की प्रस्तुति का आराकलत किया गया है। वरदान, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूम ক্স गोदान का अध्ययत यह बताता है क प्रेमचंद की सजग-हृष्टि देश के श्राथिक शोपण की ओर भी थी। वे अपने देश का श्राथिक उन्‍त्यन करना चाहते थे | लेकिन इस विषय में अ्रनेकानेक वाधाएँ थीं। सबसे बड़ी वाधा तो यही थी कि देश ग्रुलाम था । गुलामी की इस व्यथा का श्रनुभव प्रेमचंद को प्रतिक्षण होता था। उनके कतिपय उपन्यासों का इस दृष्टि से मैंने इस अध्याय के श्रन्तगंत विचार किया है । दशम्‌ श्रध्याय में निष्कर्ष और समापन प्रस्तुत है। ` श्रन्तमें प्राकर साहित्य-पूचौ दे दी गयी है ।




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