प्रेमचंद के उपन्यासों में सामायिक परिस्थितियों का प्रतिफलन | Premchand Ke Upanyason Mein Samayik Paristhitiyon Ka Pratifalan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमुख 1 ७
श्पने उपन्यासों में धर्म के लोक-प्रचलित रूप का विरोध कर उसके मर्म का उद्घाटन
जिन उपन्यासो में किया है उतका मैंने इस श्रध्याय में श्रध्ययत किया है ।
भ्रष्टम श्रध्याय मे सामाजिक जीवन की उन कतिपय समस्याग्रों का श्रध्ययन
किया है जिन्होंने हिन्दू समाज को विषत श्रौर फलतः दुवंल कर॒ रखा धा । प्रेमचन्द
के सामने सामाजिक जीवन की जो समस्याएँ मुँह वाये खड़ी थीं वे कुछ उनके ही
जमाने में खड़ी नहीं हो गयी थीं । वे हमारे सामाजिक जीवन का श्रभिशाप हैं । १९वीं
शती के सुधार आन्दोलन के युग से ही उनपर प्रह्मर किया जा रहा था | प्रेमचन्द ने उन
समस्याप्रों में से जिन समस्याझ्रों को प्रमुख समभा था उनकी प्रस्तुति उन्होंने अपने भिन्न-
भिन्न सामाजिक उपन्यासों में की थी | मैंने उन उपन्यासों के प्रमाए पर दहेज-समस्या,
विधवा-समस्या और वेश्या-समस्या के सम्बन्ध में प्रेमचन्द की हृष्टि को स्पप्ट करमे की
चेष्टा इस भ्रध्याय में की है । यहीं मध्यवर्ग की उन समस्याश्रों का भी विवरण प्रस्तुत
किया गया है जिनके परिप्रेक्ष्य में ही इस मध्यवर्ग का सच्चे श्रर्थ में श्रध्ययन किया जा
सकता है । प्रेमचन्द के युग में नारी-समाज में जागरण की एक लहर झ्रायी थी । उस
लहर के सम्बन्ध में प्रेमचंद की निश्चित राय है। मैंने उसे मी पहचानने की चेष्टा की है ।
नवम् अ्रध्याय में प्रेमचंद के उपन्यासों में समसामयिक श्राथिक परिस्थितियों की
प्रस्तुति का आराकलत किया गया है। वरदान, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूम ক্স
गोदान का अध्ययत यह बताता है क प्रेमचंद की सजग-हृष्टि देश के श्राथिक शोपण
की ओर भी थी। वे अपने देश का श्राथिक उन्त्यन करना चाहते थे | लेकिन इस
विषय में अ्रनेकानेक वाधाएँ थीं। सबसे बड़ी वाधा तो यही थी कि देश ग्रुलाम था ।
गुलामी की इस व्यथा का श्रनुभव प्रेमचंद को प्रतिक्षण होता था। उनके कतिपय
उपन्यासों का इस दृष्टि से मैंने इस अध्याय के श्रन्तगंत विचार किया है ।
दशम् श्रध्याय में निष्कर्ष और समापन प्रस्तुत है। `
श्रन्तमें प्राकर साहित्य-पूचौ दे दी गयी है ।
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