भारतीय राजनीति | Bhartiya Rajneeti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সংবাননা ९ इन खर्चोसि जो कुछ बचता उसीसे आमीण जीवनकी अर्थव्यवस्था चलती | इस आर्थिक ढचेसे जो जीवनस्तर बना वही जनताके सुख और समन्तोपका मापदण्ड हो गया | इसी बचतमेंसे गाव अपनी रक्षाका भी बन्दोवस्त करते | इसीमें अपने सामाजिक, सांस्कृतिक व स्वायत्तशासन सम्बन्धी काम पूरे करते। सरदार, सवेदार और लड़ाकू राजा युद्धके समय भी गआमीण अर्थव्यवस्था और शान्ति भंग न करना चाहते | कुछ विजयी राजाओंनि तो फोजों द्वारा हुए. गाँवके नुकसानोंको पूष्त करनेके लिए, क्षतिपूर्तिके रूपमें रकमें भी दीं। “उस जमानेमें राज्यतन्त्र या राजा माल्युजारी वसूछ करमे और पुलितका काम करनेके बाद अपने कर्तव्यकी इतिश्री समझ लेते | निर्माणकार्य वा सामाजिक व आर्थिक विकासके कोई काम राज्य अपने हाथमें न लेता | जबतक वादद्याहकी आज्ञा-उब्लंधन वा कोई दूसरा बड़ा जुर्म न हो जाय, राज्य आम्य जीवनमें हस्तक्षेप न करता | अगर गाँव सरकारकों परेशान न करता तो सरकार गवकों न छेडती । गाँव सदियों पुराने जीवनका ढर्स शान्तिमय ढंगसे चल्यते - जाते |? मुगलकालके इतिहासमें इस वातके उदाहरणोंकी कोई कमी नहीं है कि बादशाह फसलमें अपना हिस्सा वसूछ कर लेनेके बाद जनताकों शेंपर भागका उपयोग करनेकी पूर्ण स्वतन्त्रता ही न देते बल्कि इसके लिए भी सं्चेष्ट रहते कि इस स्वतम्त्रताका कोई अपइरण न करने पाये । इस सम्बन्धमे वे ऊँची नेतिकटा और उत्तरदायित्वकी भावना रखते | कर्म- चारियोंकी आदेश थे कि वे शाही नीतिको इमानदारीके साथ अमल्‍ूमें लाये | मालगुजारीका बकाया छोटी-छोटी किस्तोंमें वसूछ किया जाता | एक वार जमीनकें एक खित्तेका दरसे ज्यादा लगान झाही खजानेमें जमा देखकर शाहजहाँ इतना क्रोघित हुआ कि उसमे उस अफसरको वरखास्त कर दिया ओर व्यादा जमा हई रकम कादतकास्की लैय दी । शाहजहों ओर ओरंगजेबक जमानेके कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि रेबतकी शिकायत वादशाहतक पहुँचमे पर, कड़ाईसे ज्यादा माल्युजारी इकटठी करनेवाले अफसर और कभी कभी तो सूवेदारतक बर्खास्त कर दिये गये |” मुगलकाल्में हर नये सवेदारकों हुक्म मिलता था कि “रेंयतकों खेती जोर पेदावार बढ़ानेम बढ़ावा दो ताकि थे पूरे दिछूसे खेती लग सके | उनसे कुछ एऐंटनेकी कोशिश ने करो | बाद रखो कि रंबत ही आमदनीका स्थायी साधन दै''''* यह देखना तग्हारी जिम्मेदारी हैंकि ताकतवर गरीबकों दबाने न पायें |? यदुनाथ सरकारकी तरह ही स्टेनले लेनपूलने लिखा है--- इस बातका ख्याल रखा जाता था कि जिनसे ज्यादा अनुचित कर वसूछ कर लिया गया हो; उन्हें अपनी शिकावत ऊपरतक पहुँचानेमें मुश्किल न पड़े, जो ज्यादा रकम वसूछ कर ले उन अफसरोको कड़ीसे कड़ी सजा दी जाती थी ।”* इतने रुम्बे-चौड़े ओर फैले हुए साम्राज्यमें वाद्शाहका हुक्म कृड़ाईसे पालन कराना, उसके अनुसार कार्य कराना बड़ा कठिन था,' और इसलिए इधर उधर अनेक भ्रष्चार इत्यादिके मामले बने रहते थे । एक जमानेसे माल्युजारीकी दर धीरे-धीरे बढ़ायी जा रही थी। हिन्दू राज्यकालमें यह कर कुल उत्पादनका छठों हिस्सा था | मुसलिम शासनकालम कर बढ़ता ही गया | अकबरके ९. यदुनाथ सरकार, दि सुगर ऐडमिनिस्टू शन, छू० १३-१४ २. मिडीचल इण्डिया जं डर मुदम्मडन खरु, प° २६३-६४ ९ ,




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