श्री जवाहर किरणावली [भाग २७] | Shri Jawahar Kirnawali [Bhag 27]

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Shri Jawahar Kirnawali  [Bhag 27]  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विवाह या ब्रह्मचर्य ? ससार मे पुत्र या कन्या को सुखी बनाने का उपाय उनका विवाह कर देना ही माना जाता है । आजकल माता, पिता, मित्र ओर सबधी, पुत्र या पुत्री का विवाह कर देना अपना अन्तिम और आवश्यक कर्तव्य मानते हैं। वे समझते हैं कि विवाह कर देने से जीवन सुखी हो जाता है। इसलिये वे सदा इसी प्रयत्न मे रहते हैं कि हमारे पुत्र या पुत्री अथवा सखी या सहेली का पिपाह किसी योग्य कन्या या वर के साथ हो। वे इसी के लिए चितित भी ररते रे ओर यी शुभ कामना भी किया करते हे । वसुमति की सखिया भी वसुमति के विषय मे यही शुभ कामना किया करती धी कि हमारी सखी का विवाह किसी रेसे ही योग्य पुरुष के साथ हो। उनकी भावना भी यही रहा करती थी । इसलिए एक दिन वे विनोदार्थं वसुमति से कटने लमी कि वहिन वसुमति अब हमारा-तुम्हारा साथ कुछ ही दिनो का ১। थोडे ही दिनो मे तुम्हारे लिए सब नया ही वनाव होगा। तुम किसी राजा ठी मरारानी दनोगी तब नया महल होगा नया उपवनं होगा नया साज- भगार एोगा नया सखा होगा ओर सहेलिया भी नई होगी । हम सबको तो यही छोड जाओगी । फिर तो हमारी याद भी न आवेगी ओर हम आपकी प्रिय मूर वाणी तथा आपके द्वारा किया गया श्रवणामृत-वीणानाद सुनने से ओर आपफे साध ररने के आनन्द से वचित रह जावेगी । इस प्रकार हमारी हानि ६) सोप फिर भी हम उस शुभ दिन की प्रतीक्षा करती है जब आपका पापिप्रण-आपके अनुरूप किसी राजा या राजकुमार के साथ हो और आप 15 ऐ साथ रोरिणी तथा वृक्ष के साथ लता की त्तरह अपने पति के साथ 1 ए । एः सदा यही शुनकामना करती हैं कि हमारी सखी को ऐसा पे प्राप्त शे ज्ये गुण डर सोन्दर्य का परीक्षक तथा आपका आदर ২২ ০ री, शारे रूदभाय से ऐसा अवसर शीघ्र ही आवेगा। म श তর ४५ ५4 ५“ 04 শি সি সস ৯ শী भ > च ~न ल~ ^~ এ -- মশা বুলি ७




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