काल के पंख | Kaal Ke Pankh

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Kaal Ke Pankh by आनन्दप्रकाश जैन -Aanandprakash Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क च ~ ~ +~ শি संस्यूकसफा बेटां १५ वटो, सनौ,” चन््रसुमने चादर उतारकर परसिवारिककरे हाथमे देते ए कटा, ध्थूनानी पुष्प कैसा कणा ` “ऐसा कि उसके आलेसे यहाँक़ी सारी वाटिकाके फूल खिलखिन्ग करम रटे ই? হারল হর कहा । “खिलखिला कर हँस रहे हैं! अर्थात्‌ यूनानी पुष्प सभीको बहुत अधिके मायी दै “इतना अधिक कि इँसले हँसते सभी प्रष्पोंकी पंस्ड़िया मेड़ी जा द ह 1 “ओह ! पंखडियां झड़ी जा रही हैं| परन्ध यह इलेप इन नहीं सभक । नुम कृद गर्भीर वात कहना चाहती हो, रानी ? पांभीर तो अब कुछ नी नहीं रहा। रेसशा लगता मृ & और साय रनिवास उसके लाथ मृग्य धन गया वडिनती है और हम सव जन्मजात जड र अर्थात्‌ ¢ चऋखगुततने आश्रर्नंस पूछा “তান সু হি राजमहलकी प्रत्येक सर्वादा भंग हा रही हैं| किसीकी सम्पता, शालीनता, नीति-निबमका ध्यान नहीं | रानियों और दासियाँ एक ही एक्तिमें खड़ी होकर दास्थालाप कर रही हे और बह यूनानी छोकरी समती है व भैत्पूकम सेनापतिकर वेदी नदी हे, उषारके विधति की बेटी है !! “ओह | माल्म होता है मामला अनुमानसे भी अधिक गंभीर है,” न््रयुतन कहा । फिर उसने हेलेनक्री सभी दृस्कतीका पू चिट॒ठा मुना सुनकर #सते हए कह, “सुनो, रानी, तुम संमवतः नदी जनता कि हैमनं बह गजनीतिक विवाह किया है | शघुनें हमसे मेत्री स्थापित करनके लिए हमारे रक्से अपने स्तक संदेध जोड़ना चाहा और राजनीतिक इसे हम इसकार नहीं कर सके । अन्यथा उस यूनानी रामकम्यास हम कष माहं नहीं था | तुम जानती हो तुम दम सवस प्रिय हो | उसके साथ हमारा कि या तो बहन | या फिर बह | ५ ৬. नण হর श <




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