भागवत दर्शन | Bhagwat Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)শটে
५
^
(^
सवकौ भो मना करतां ह । दँ, कोई शान्तहो, सांत्विक हो
कोध रहित हो, श्रद्धा से मुझमें सेंट करे उसे तो सें अहण कर
सता हूँ ।” है है
द्रौपदीजी नेकहा--“हम आपके भक्त है यानहं, हम
अद्भा से भेंट करते हैं. या नहीं[इसे आपके अतिरिक्त और कौन
जान सकता है १? न |
भगवान् ने कहा--“तुम तो भक्त हो, और तुम जो भेट करते
हो भ्रद्धा से करते हो, किन्तु यह फल तो दूसरे का भाग है ।*
'द्वीपदी ने कहां--भगवन् ! दूसरे का किसका है, वन के फलों
पर समान रूप से सबका अधिकार है, जो उसे तोड़ ले उसी
का हो गया।? ^
भगवान् ने कदा-- यद तों सत्य ह किन्तु तुम्हें पता नहीं ।
इसी वनमें परम क्रोधी महर्षि दुर्वासा तपस्या करते है । बे वपं मे
एक बार ही फलाहार करते हैं, सो भी इसी पेड़ का फल खाते
हैं। उनकी तपस्या के प्रभाव से हीं यह आँवला इतना बढ़ गया
है । तपस्वी की इच्छा पूर्ति नहीं होती है, तो उसे क्रोध आना
स्वाभाविक ही है। य ही दुर्ासा तपस्याके अनन्तरे केवल भोजन
करने ही श्रीरामचन्द्रजी के समीप गये थे | लक्ष्मणजी ने इतना ही
कहा--इस समय राघवेन्दु कोई गुप मंत्रणा कर रहे हैः श्राप क्ण
भर विश्राम करें ।” बस, इतने पर ही कुपित दो गये सम्पूणं
रघुवंश को नप्ट करने पर उद्यत हो गये 1 लक्ष्मण” जी अपने
प्राणों का पण लगाकर श्रीराम की आज्ञाके विरुद्ध भीतर गये और
यह तनिक-सी घटना ही सपरिवार भ्रोराम के अवनि त्याग का
कारण वन गयी 1 सो ये दुवासा बंड़े क्रोधी हैं। तपस्या के परचातू
सेडू पर आँवले फो न देखेंगे, तो छूटे ही ऑँवलों तोड़ने चाले'
User Reviews
No Reviews | Add Yours...