मिलन - मंदिर | Milan Mandir

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Milan Mandir by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) ক ॐ क कर क क বা पांचकाड़ी ने बड़े भाई से कदहा--“कुछ উজ ই! जरतीशचन्द्र--“ हँ--क््यों” ? दीजिए রখ पांचकोड़ी--दो पैसे दे दीजिए” जतीशचन्द्र-- कया करोगे” ? पाचकोड़ी-- दीजिए तो” जताशचन्द्र ने जेब से न्िक्राल कर दिये । दसा समय घदा बजा। गाड़ी न सीटी दी। इसके জাল भक २ करके धुआं छोड़ती हुईं चल दी | पाचकोड़ी ने दो पेसे की मिठाई लेकर शचीश को दी और- उसके साथ वाते करता इमा घरकी ओर चत्र दिया । ৬২ परिच्छेद चोथा परिच्छेद । ৪০৪৮ शोहर ज़िलेसें शोनपूर नामक एक छोटा सा कसवा ह । इस कृसवे म राय--वङा पुराना तथा माननयि নু ই । जख कारण से बड़मल के बहुत से एराने बश निधन तथा हीन होगये, उसी कारण से राय--बंश क्म अवस्था भी হল হী বাই | वह कारण ड सुकृददमाबाजी । थोड़ी भूमि के ऊपर ज़िमीदारों के साथ हाइकोर्ट तक लड़ते लड़ते यदनाथ राय ऋस




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