नीलकंठ पाखी की टोह भाग 1 | Nilkanth Pakhi Ki Toh Vol I
श्रेणी : साहित्य / Literature, कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
480
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका নদ
ने देखा अनत जलराशत्ि के भीतर वडे-वडे राक्षतीय गजार, मच्छ घरियाल जैसे
पानी पर उचक आय हैं। वे मानो सभी को चुपके से चेतावनी दे रहे हा--मरे
भाइया देखो, *खा हम लागा का तमाशा देखो हम जल के जीव हैं हमारा सारा
सुख जल में है।
खास सतर नही, परशुजगतं मौर मनुप्यजगत पडोतिया की तरदे पारस्परिक
सबध का विनिमय करते हैं। सोना पुत का जय जम हुआ उस समय खेताम
बछुओ वा अडा देन का समय था और इससे दूरी अधिक कही नही वटती। आरभ
म ही मैंन बताया था, भारतीय साहित्य वी विशेषता, प्रद्नति बे साथ मित्रता
स्थापित करन में है। वक्मि से लेकर विभूतिभूषण तक बंगला उपयास वी घारा
पर हम ऐसी एक कहानी तक जा पट्चे जिसका सूमानी उच्छवास घर टूटन वा
हाहकार भूख मिटाने का संग्राम साप्रटायिक सबीणता मानवीय मूल्यवोध ऐसे
शक प्रतीक द्वारा वर्णित हुए हैं जो शाखानिभर होते हुए भी नभोचारी गति से स्वग
ओर मय के केंद्रविदु म अपने चान का प्रसार करते हैं घ्लिकण और तारागण
के थुगपत आक्पण से वही है नीलकठ पाखी ।
--निषिलेश गुह्
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