राजस्थानी लोकगीतों के विविध रूप | Rajasthani Lok Geeto Ke Vividh Rup

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Rajasthani Lok Geeto Ke Vividh Rup by जगमल सिंह - Jagmal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्यीन्याश्रित सम्बन्ध है। वाले वृूचर को भी मान्यता यही है--/मानव श्रम के साथ ही पंदा हुई होगी लय, संगीत और कविता । लय के साथ किये जाने वाले कार्य में श्रम अपेक्षया सहज हो जाता है। किसी कार्य को सामूहिक तौर पर करते समय हाथो में शक्ति का शाघटित रूप उपस्थित करने के लिए उसे एक जूट करना आवश्यक होता है । मासपेशियों के कार्य से सघटित - शवित का जब इस प्रकार अधिकतम उपयोग करना होता होगा, तो श्रमिको के भख से रचत एक सम्मिलित स्वर फूट पढ़ता होगा । कालास्तर में ससु- पुत्रों (मानव) वे उनस्वरो को शब्दों के लमात्मक आवरण में अभिव्यकत करना सीखा होगा । इस प्रकार उत्पत्ति हुई होगी गीत बी । श्रम करते समय प्रयुवत औौजारो की धातुर्भों से टकराहुट भौर तत्परिणाम स्वरूप फूटने वाले स्वर भी प्रेरणादायक बने होगे भौर प्रारम्भिक वाद्ययत्रो की कल्पना भी उसी से हुई होगी (10610 ७16६ 11105) ४ चक्को चलातौ, रोटी सेकती नारियों भौर बागड़ में वर्षा की फूहार से कूषि कार्ये की अनकूलता भौर कुपक जीवन की व्यस्तता विषयक पुरुषों के गीतों मे उसके अवशेष भाज भी मुरक्षित है! पुरुष और नारी, दोनो श्रम बरते हैं ॥ श्रम करते समय या श्रम के परिहार के लिए पीतर दानो गाते हैं । तभी कुछ लोकगीत मात्र पुर॒षो तक मीमित होते हैं -- दुछ का गायन मात्र मनुष्य हो करते हैं दुष गीत मात्र स्त्रियाँ ही गातो हैं । कुछ का ग।यन पुरुष थौर स्त्री दोनो सम्मवेत रूप में करते हैँ । प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्‍न लेखों मे विवेचित गीतों में यह वैविध्य वर्तेमान है। यो स्वभावत, अधिकाण लेखों में वैसे गीतो को ही महत्व मिला है जिनमें नारी मानस की प्रधानता है । या जितका गायन नारियों के मध्य अधिक प्रचलित है । पुरुषों में श्रवचलित अथवा मान पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले विवेचित अधिकाश गीतों पर नजर डालने से यह अनुभव हुए बिना नहीं रहता कि जगमल जी ने उन गीतो को अत्यधिक महत्व दिया है जिनमें नारी की स्थिति (25५८॥७), उसकी घमिता (४४०॥19111000) और उसके प्रति पुरुष के अन्तर्लोक में सचित काममूला भावना का प्रकाशन हुआ है अयना पस्योकी वीरता गौर लोक्कल्याथ वेदिवा पर आत्माहृति करने का अधिसस्य लोवगीत नारियो में प्रचलित होने है । सभ्यता के




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