कुमार गंगानंद सिंह | Kumaar Gangaanand Singh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कुल-परिवार
पंजी-प्रबन्ध में श्रोत्रिय वंश के सात कुल-मूल कहे गए हैं :
“गंगौली च कुजौली च पवौली त्वलयी तथा।
बहेराठी शंकराठी पाली पज्या-तु श्रोत्रिया:।।
इन्हीं सात में अलयी कुल परिगणित है। इसी कुल में अनेक वंशधर
महामहोपाध्याय, दीवान बहादुर एवं चौधरी आदि विद्या-वैदुष्य तथा
शौर्य-एेश्वर्य देने वाली उपाधि से विभूषित होकर उल्लिखित हुए है । कुमार
गंगानन्द इसी कुल के दीपक थे जो विद्या और राजनीतिक संपर्क दोनों से
उदभाषित होते रहे।
मिथिला में मध्यकालीन एवं उत्तरकालीन जितने राज-रियासत कोयम
थे उन सबों से इनके पुरखों का निकट सम्पर्क रहा।
इस अलयी (अलैवार) कुल के बीजी पुरुषं गंगाधर (1330-1413) थे,
जिन्हे महामहोपाध्याय पद से विभूषित कर, इनकी विद्या-महनत्ता के कारण
इन्हें कुल-प्रवर्तक माना गया | गंगाधर का वैवाहिक सम्बध ओइनिवार वंशीय
महाराज भोगीश्वर सिंहजी के धर्माधिकरणिक गणेश्वर की कन्या से था । इस
पत्नी से उन्हे हरिहर ओर पदमाकर दो पुत्र हुए । दोनौ भाई बहेडा (दरमंगा)
के निकट पितृ-उपार्जित ग्राम बगनी मे जाकर बसे । गगाधर की द्वितीय पत्नी
से जो कन्या हुई उनकी बेटी विद्यापति के मुख्य आश्रयदाता महाराज शिव
सिह की पटरानी लखिमारानी के नाम से विख्यात हुई । अन्य पत्नी से दौ
पुत्र दिवाकर ओर प्रभाकर तथा एक पुत्री हुए । इसी कन्या के प्रपौत्र पहसरा
सौरेया राज के संस्थापक समरूराय हुए।
गगाधर के ज्येष्ठ पुत्र हरिहर के प्रपौत्र थे महामहोपाध्याय रामभद्र ा.
जिनके प्रपौत्र दीवान देवानन्द झा बनैलीराज के सस्थापक हुए।
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