बुन्देलखंडी लोककथाओं में कथाभिप्राय | Bundelkhandi Lokkathayo Mein Kathabhipray

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Book Image : बुन्देलखंडी लोककथाओं में कथाभिप्राय  - Bundelkhandi Lokkathayo Mein Kathabhipray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'संगीत-कला' के अन्तर्गत गायन,वादन और नर्तन अर्थात्‌ गाता, बजाना और नाचना का समावेश मिलता है। भारतीय संगीत को दो भागों में विभाजित किया गया है- |॥| शास्त्रीय संगीत और {2 देशीय संगीत। इनमें शास्त्रीय संगीत ध्वनि प्रधान होता है, जबकि देशीय संगीत शब्द प्रधान होता है। ध्वनि को प्रधान मानकर राग-सुरों आदि के विशेष विधान से गाया जाने वाला संगीत 'शास्त्रीय संगीत' कहलाता है। संगीत या गायन भी और कलाओं की तरह प्रयोग प्रधान है। प्रयोग पहले होता है, शास्त्र या सिद्धान्त पीछे बनता है। इन्हीं शास्त्र या सिद्धान्तों के अन्तर्गत कतिपय ख्ढ़ियों प्रारम्भ से ही प्रयोग में चली आ रही हैं, जिन्हें संगीत-उभिप्राय' की संज्ञा दी जाती है। भारतीय शास्त्री-संगीत में शुद्ध-स्वर सात माने गये हैं- 'पड़ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम पंचम, धैवत ओर निषाद।' मुख्य रागों की संख्या छः: हैं - 'श्री, बसंत, भैरव, पंचम, मेष, नटनारायण।'“ इनम पोच शिवजी के मुख से तथा नटनारायण पार्वती जी के मुख से उत्पन्न माने गये हैं। इनमें से प्रत्येक राग में छ:- छ: रागनियाँ भी प्रयक्त होती हैं। इन रागों की उत्पत्ति शिव-पार्वती नर्तत के समय मानी गयी है। संगीत में सात शुद्ध स्वरों का प्रयोग किया जाना संसार में सात समुद्र , सात महाद्वीप व सात आश्चर्यों की तरह एक 'अभिप्राय” है। रागों के गाने में काल या समय का निश्चित विधान होता है, उदाहरणार्थ- राग भैरवी सुबह के समय गाया जाता है तो श्रीराग के अन्तर्गत अने वाला राग पहाड़ी दिन के तीसरे पहर के बाद से लेकर अर्दधरात्रि तक गाया जा सकता हे। इन रार्गो के गने मे ऋतु नियम भी हैं, उदाहरणार्थ- शश्रीराग एवं उसकी रागनिर्यो को शिशिर ऋतु में गाया जाता है तो राग वसंत- बसंत ऋतु में , भैरव- गरीष्म ऋतु भ, पंचम- शरद ऋतु भ, मेष- वर्षा ऋतु मं तथा नटनारायण~ हेमन्तु ऋतु भँ गाया जाता है।‡ प्राचीन । - संगीत ~ शास्र, के0 वासुदेव शस्त्री, .पु0- 26 2- वही, पु0~185 3 - वही, पृ0 -188




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