चैतन्य संप्रदाय का ब्रजभाषा काव्य | Chatanya Sampradai Ka Brajbhasha Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रजभाषा-काच्य के वैशिष्टूय गौर महत्व को भली भांति प्रतिश्टिस फिसा हैं। चैतन्य संप्रदाय के आचार्यो हारा प्रतिप्रदित भवित-रस आर दीय मान ई5 के साथ ही काथ्य-शास्त्रीय निकघ पर इस काव्य को समग्रतः परर कार इसका समृनित मूल्यांकन किया है | ^ ৪৭ | ब्रजमंडल व राजस्थान के अनेक हरत लिखित ब्ंश्र-भ टाशें में हु उपा गोयल ने परिश्रम व मनोयोगपुर्वक प्राचीन पराइलिपियों का अनुरंधानात्मक वषम अनुगीलत किया । इस पुस्तक में अनेक अज्ञात प्राचीय हस्त लिखिए बी के विधरण उद्धरण एवं चित्रों को देकर जहां केथ्य व तथ्य वो तकंसम्ग्त 4 प्रयाणम किया गया है। वहीं अनेक ज्ञात-अज्ञात वाणीकारों के अभालोचित साहित्य को प्रस्तुत कर भावी अनुसधाताओं के लिए दिशा-निर्देश भी किया गया 6 । জানো বা? आवश्यकता नहीं कि चेतन्य सप्रदाय के साहित्य का क्षणी माठानुन शावपुर्वक प्रकाशन नितांत नगंण्य हे । पह प्रबंध मंतःप्रसादत्त से अधिक मनोन्‍तयन की बस्तु है। शोधाशी लेखिका फो भक्ति-संस्क्ृति विरासत प्रे भिनी है जिसे उन्होंने समाहित सित्त द्वारा अनुशीलन- परिशीलन से और पुष्ट कर लिया है। साथ ही, उन्होंने एुशाग्रह के रखाव वर शीधोचित' तट्स्थता रखते हुए विपय का तकोचित प्रतिपादन किया 1 এএ লিনা, कर यहु क्षति विशर्‌ भक्ति तत्व की परिच्ाथिका और कावब्योत्कर्ष दी मामिक संवाहिका है। यह अध्ययन साहित्य, काव्य शास्त्र, भविति-रस णाग वर्णने आर कला-अध्येताओं हारा समादुत होगा, ऐसा किण्वास है । शत-शल बधाई । जाणशा है कि डॉ० (श्रीमती) उपा गोबल आगे भी अपनी कृतियों द्वारा ब्रज-साड गय के विभिन्न आयासो कौ अपनो प्रवर प्रतिभा के साय विमित करती रहियें।। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ““ डॉ ० सरेशघबच्च ससन वत्‌ २०४६ (पूवं निदि, वर दापने णोध-मन्थान, र दन) शि रीर ध पर्य, हिदी स्नातको भर जध्ययंन রন থপ वताम्‌, केऽ ए {पऽ जो) कीलिज, कराम {० ५५) ০




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