नन्द दास भाग 2 | Nand Das Part 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nand Das Part 2 by उमाशंकर शुक्ल - Umashankar Shukl

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उमाशंकर शुक्ल - Umashankar Shukl

Add Infomation AboutUmashankar Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१५ १५ दशम स्कध श्रथम अध्याय नव लच्छन करि लच्छं जो, दस्य आश्रय रूप। नंद वंदि लै प्रथम तिहि, श्रौ कृष्ताष्य अनूप ॥ परम विचित्र मित्र इक रँ, कृप्न-वरिष सून्यौ सो चहै। तिन कटी दशम स्कध' जु श्राह, भाषां करि कच्छं वरनौ ताहि 1 सबद संस्कृत के ह जैसे, मो पै समुफि परत नहीं तैसें। ताते सरल सु भाषा कीजै, परम न्नमृत पीजै, सुख जीजै। तासों नंदः कहत हं तरह, ग्रहो मित्र! एती मति करहुं । জাল बड कविजन उरभे, ते वे श्रजहें नाहिन सुरक्ते ! तह हौ कवन निपट मतिसेद, बौना पै. पकरावों चद । সহ जु महामति श्रीधर स्वामी, सव॒ ग्र॑थन कै अंतरजामी | तिन कही यह जु भागवत ग्रंथ, जैसे दुघ उदधि कौ मंथ। मंदर गिरि से मज्जत जहाँ, रेनुकनूका हो को तहाँ। तामे यह श्री दशम स्कंघ, आश्रय वस्तु कौ रसमय सिधु। विहि सधि हो किहि बिधि अनुसरों, क्यो. सिद्धांत-रतन उद्धरो। मित्र कहत है तौ यह्‌ एस श्रौ नदः तुम कहतहौ जसे + प




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now