साहित्यशास्त्र का पारिभाषिक शब्द-कोश | Sahityashastra Ka Paribhashik Shabd- Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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$ | श्मनिथम में नियकष अधीरा-प्रगल्‍्भा--कद्ध होने पर नायंक का तजन और ताड़न करने वाली प्रगल्मा नाथिका । अधीरा-मध्या--क्रद्ध होने पर परुष भाषण द्वारा नायक को खिन्न करने वाक्त मध्या नायिका | अधति--कामातुरों की दस चेष्टाओं में से एक बिशेष दे° कामदशा। अध्यवसाय--नाथ्क में रसपोष के लिए प्रयुक्त होने वाले ३३ नास्यालंकारौ में से एक। विशेष दे० नाव्यालंकार । अध्यांतरिक-काव्य-गीति--गीतिकाव्य की प्रेरणा-शक्ति कबि को अंतस्तल से मिलने के कारण यह गीति-काव्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भेद है। इसमें कवि के व्यक्तिगत भावावेशों को प्रधानता दी जाती है। यह कवि की अंतः प्रवुत्ति ओर आन्तरिक चित्तवृत्ति का ही काव्य है। अपने इष्टदेव के मिलन पर श्रपने भावों का निवेदन मस्ती में अचानक गा उठना, अपने अंतस की भावनाओं का चित्रण, आदि ही इस श्रात्माभिव्यंजना में निभाया जाता है। कभी किसी विशिष्ट वस्तु को देख स्मृति श्रोर कल्पना के बल पर कौतूहलपरं सष्टि खड़ी की जाती है। अंग्रेजी काव्यशास्त्र में इस कोटि के गीतिकाव्य 'सब्जेक्टिव दाइप श्रॉफ लिरिक पोइटी? कहते हैं। श्ननंगक्रीडा--पूर्वाद्ं (प्रथम-द्धितीय चरण)में १६ गुरु और उत्तराद्ध (तृतीय- चतुर्थ चरण) में ३२ लघु से बनने वाला विषम बृत्तलुंद | इसे सौम्यशिखा भी कहते हैं । ख्रसंद--ज रा ज रा लगा कहे अनंद छुंद को; जगण, रगण, जगण, रगण लघु और गुरु से बनने वाला शक्‍्त््री जाति का समवृत्त छुंद । अननन्‍्वय--उपसानोपभेयत्वमेकस्थेब त्वनन्वयः ॥--साहित्य दर्पण एक साम्यमूलक अर्थोलंकार जिसमें एक वाक्य में एक ही वस्तु को उपमान ग्रौर उपमेय बनाया जाता है | उदाहर्ण- गगन सदृक्ष ह गगन ही, जलधि-जलधि भम जान । है रण रावण रामको, रावण राम समान ।--काव्यकल्पदुम अनवीकृतत्व--बार-बार उसी पद के उसी अथ वाले पर्याय पद रखने के ` कारण नवीनता उत्पन्न न होने से उत्तन्न अथदोष (दे० यथा०) जेसे--“सूथ सदा निकलता है, हवा सदा चलती है, शेष सदा धरती को धारण करता है और धीर सदा श्रपनी प्रशंसा नहीं करता है, यहाँ 'सदा' के बार-बार आने से नवीनता न रही और यह दोष हो गया | यहां सदा के पर्याय रख देने पर भी यह दोष बना रहेगा, यही इसका कथितपदत्व से मेद है । अ्रभमालंबसता--कामाउुरों की दस चेष्टाश्ों में एक | विशेष दे ० कामदशा | अनियम में नियम--नियम अ्रभिप्रेत न होने पर भी नियम बनाकर बात




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