छीतस्वामी | Cheetswamee
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ब्रजभूषण शर्मा - Brajbhushan Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
ऊँ
वर्मा द्वारा परिप्रेषित ' ब्रजभाषा * नामक अन्थ अभी छु समय पूर्वं सुभे
पराप्त हन्ना था | उक्त भरन्थ में ब्रजभाषा ऊ त्वन्त विद्धाचू वर्मजीने धीर
गंभीर व्यापक दृष्टि से त्रजमाषा-व्याकरण की एक रूपरेखा प्रस्तुत की है-
जो अधिकांश व्यापक है | उसमें शब्दों क्षौर मातन्नाओं के अधिकांश प्रचलित
सभी रूपों को स्वीकार कर एुक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया गया है-
जो स्तुत्य हे ।
घजमाषा के व्यापक विस्वघार को देखते हुए, उसमें किसी एकपत्तीय
सिद्धान्त को ल्ादना उचित भी नहीं हू | ब्रज के शब्दों का रूप जहाँ शुद्ध
त्रजीय उच्चारण पर अवरंबित है, बहा अवधी, कन्नीजी ब्ुदेलखंडी एवं
राजस्थानी क्षादि प्रान्तीय उच्चारणों का भी उप्त पर पर्याप्त प्रभाव ই জন:
प्रचलित, प्राचीन, विभिन्न, हस्तलिखित प्रतियों की उपेक्षा कर उसका एक-
देशीय रूप निधोरित कर लेना जहां सहसा दुःसाहस दै-वहां लक्च-रक्ष
जनों की व्यावहारिक साहित्यिक भाषा के साथ महान् न्याय भी।
काँकरोली, नाथद्वारा, कामवन भादि प्रज-साहित्य के प्राचीन संप्रहालयों
में विद्यमान, विश्विज्, हस्तलिखित पोधियों में>जिन्हें हम लिपि की दृष्टि से
शुद्ध और प्रामाणिक स्त्रीकारते हैं- प्रजभाषा के शब्द एक समान छिपि में
ही लिखित नहीं मिलते |.
मित्रवर पे. श्रीजवाहरछाछजी चतुर्वेदी ( मथुरा ) द्वारा सम्पादित
* संपादित सूरप्तागर ! के दोष ` नामक पुस्तकिका कुछ दिन पूर्व
इृष्टिगोचर हुईं थी। सूरक्ृत जन्म-वधाई का ` एक पदु पदुकर वहसः
व्रजभाषा के सम्बन्ध में विच्चार-निमग्न दहो जाना पड़ा । । * परामशे-समिति *
में द्विन्दी के ब्ध प्रतिष्ठ प्रायः समी विद्वानों का, नौर विशेष कर विद्या-
विभागीय प्रकाशन ऊ अन्यतम . माननीयः सम्पादक गो. श्रीव्रजभूषणकाल्जी
मद्दाराज्ञ का माम देखकर तो मद्दान आश्चर्य हुआ है। अन्य विद्वानों की
बात तो में नहीं कहता, पर उक्त महाराजश्री का परामशे ' सूरसागर ! के
विशाल प्रकाशन के सम्बन्ध में है, न कि उसके उदाहंत सम्पादन ( शब्दों के
रूप निर्धारण सम्बन्ध ) में ्षपनाई गई प्रणाली के किये । वे बाचनिक पर्व
व्यावहारिक दोनों में भिन्नता के पक्ष पाती नहीं है। भष्टद्धाप-साहित्य के सम्बन्ध
में ( ज्ञो-विद्याविभाग काकरोली से प्रकाशित हुआ है )- उन्होंने भी एक-
मत, च्यापक, व्यावहारिक शेल्ली अपनाकर सम्पादन सें विशिष्ट स्दयोग दिया
२
User Reviews
No Reviews | Add Yours...