वार्षिक रिपोर्ट [उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग] | Varshik Report (Uttar Pradesh Lok Seva Ayog)

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Varshik Report (Uttar Pradesh Lok Seva Ayog) by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ की सम्भावना हैं, त्योही उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (हृत्यों का परिसीमत) विनियम १९५ के विनियम ५ (क) तया ६ (ग) के अन्तर्गत आयोग को निर्देशित करता आवश्यक हू । एषे निर्देशों में कुल ९९४ अभ्यर्थियों के मामले थे, जिन पर आयोग ने प्रतिवेदनाधीन वर्ष में विचार किया, देखिये परिश्षिष्ट ६ में दिया हुआ विवरण । आयोग ने इन सभो मामलों में जो अभिलेख और सुचतायें उसको दो गईं, उनके आधार पर अपना परामर्श दिया। २--उप रिलिदेशित ९९४ अभ्यवियों में े आयोग ने ५३१ को लगातार अस्थायी नियुक्षित के लिये अनुनोदित किया और ३९ को नहीं । জিল मामलों में बह मालून था कि पद अल्पा- वर्धि के हें और जिनकी अवधि को अनिश्चचित काल के लिये बढ़ाये जानें की संभावत्ता नहीं थी, उन मामलों में अनुमोदन सामान्यतः पद को अवधि की समास्ति तक दिया गया । जिन मामलों म यह्‌ सम्भावना थी कि निपुक्षित की अवधि दीर्य काल तक रगौ, अनतुनोडन साधारगनः तन तक की सतत লিবুকিল ঈ ভিউ दिया गया, जब तक कि पदोस्‍्त्ति अबबा सीबो भर्ती द्वारा लिय- मित ढंग से चुते हुए अब्यर्ती उपडब्ध न हो जाये। शेत्र ४र४ अर्भ्योवियों के विजय में स्थिति इस प्रहार थी:-+- (१) १७ अस्यर्थियों के मानों में आयोग ने उनकी उपवुक्तता के विश्य में अपनी कोई राय नहीं दी, छन्तु वरानन एटा क्वि उततें से ८ अभ्यर्थियों हारा घःरित पदों को सीबी भर्ती द्वारा तवा शेव ९ द्वारा घारित बडे को पशेल्तत अभ्य বিএ রাত নিসার উন লতা আল चाहिये और इब दोनों प्रकार के चुद: নী में स्थानायन्न पदयथारों अन्य অক্যজিতী ঈ साय इनं अवसरो पर अयनी भाग्य परीक्षा करें। (२) १५ अभ्यर्थियों के विवय में कोई राय देते को आवश्यकता नहीं स নী गई क्योंकि उसके सानलों का जि्देश आयोग को किये जाने के पडले या थोड़े दिन जाद ही वे या तो अत्यावत्तित था अभोवगित कर दिये गये थे या सर गये थे । (३) ९९ अभ्यर्थियों के मामलों पर आयोग ने राय दी क्षि তলব বহাল करने को आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि या तो नियुक्तियों के एक वर्ष से अधिक कार तक चलने को सम्भावना नहीं थी या वे प्रतिनिवुक्ति के मामले थे अवबा [जन पदों पर वे निरन्तर कार्य कर रहे थे उन पदों पर उदरो सतत अध्यायो निपृषक्त का अनुमोदन आयोग पहले ही कर चुके थे। রী (४) এছ अभ्यरथियों के मासलों में कुछ सूचनाओं तथा/अथवा पत्रों का अभाव या अपूर्णता पाई गई और उनकी सांग की गई । अतः उनके मानल का चिबटारा न हो सका। | (५) शेष २०७ अभ्यर्यो, जिनके मामलों पर आयोग ने विचार किया था, वे थे अवकणित कर्मचारो या वे पात्र अभ्यर्यी, जिनकी संख्या वास्तविक रिक्तियों ते* अधिक यौ, | _ ३-“>परिश्िष्द इ-अ में वणित ४५ मामले, जिनमें ऊपरके दूसरे परा के उपय {४} मे वणित ८६ अभ्यधिको सम्मिलति करते हप ४४२ अभ्यर्थो थे, प्रत्येक के सामने अंकित कारणों से वर्ष को समाप्ति तक निबटाये न जा सके। ১ ৯ के प्रतिवेदनों में संकेत किया! गया था, एते बहुत से मानक षे, जिनं अस्थायी नियुक्तियों के निवरितकरण के लिये आयोग को निदेश नियत समय के बहुत समय बाद किये गये । _जुडाई, १९५५ में अध्यक्ष ने कुछ विभागों को एवो अनिथमितक्ताभ से मुय मन्‍्त्री को सूचित किया, जिनमें अस्थायी जियुक्तियों के मानड़े वर्षों तक जयोग के अनु नदमयं उतको नि दित नहीं किये गये थे। आयोग ने सुझाव दिया कि यह अच्छा हो कि समो नियुक्ति भव्यो को ठु: परिपत्र इप्‌ जिय का भेजा दय जाय फि वे ज्यों हो कोई अध्यायथों नियुक्त करें, नियुक्ति आज्ञा को एक प्रतिलिवि आयोग को भेज शिया करें, जियते आयोग का कार्यालय भी इन अस्थायी नियुक्तियों की जांच कर सकते की स्थिति नें हो जाय । यह सुवाव सात लिया गया हं ओर इसे विषय सं आवश्यक जादेश वियुक्ति विभाग कार्यालव ज्ञायु सं० २४८६/२-बो- १६४-१६५५, दिनांक ११ अगस्त, १९५ए में जारो किये जा चुके हैं। इतर आदेशों के अनुत्तरण




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