रंजीत सिंह | Rnjitasingh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
323
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिख धर्म का आरंभ और गुरुओं का वंन ११९
चेश्न और कंद्रीय स्थल्ष बन गया । गुरु अर्जुन देव ने ग्रंथ साइब का संग्रद
किया । इस प्रकार सि्खों के ल्लिए एक नई भाषा, एक पवित्र रुथक्ष ओर
एक धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हो गए। सारांश यह कि इस मत को श्रग्रसर करने
आर दृढ़ बनाने के सब सामान एकन्न हो गए । गुरु के शअजुयायी संख्या
में निव्य बढ़ने लगे जिन के भट और चढ़ावे से गुरु साहब की वार्षिक आ्राय
भी पर्याप्त हो गई, और उन््हों ने धार्मिक ओर सांसारिक दृष्टि से समाज
में ऊंचा स्थान प्राप्त र जिया ।
गुरु अजुन देव का वध--१६०६ ई० में
गुरु अर्जुन देव का होनद्वार बेटा जो बाद में गही पर बेठा बहुत
सुंदर और गुणी बालक था। श्रत्व पंजाब भ्रांत के वज़ीर माल दीवान
चंदूशाह ने उस के साथ अपनी बेटी का विवाह करने की इच्छा प्रकट
की । गुरु अजुन देव ने किसी कारण इसे स्वीकार न किया । ईस पर
दीवान च॑दशाह इतना क्रुद्ध हश्च कि गुरु जी का जानी दुश्मन बन गया ।
संयोगवश चंदूशाह को बदला लेने का अवसर भी जल्दी ही हाथ लगा ।
जद्दोंगीर के गद्दी पर बेठते ही उस के बेटे शाहज़ादे ख़ुसरों ने बाप
के विरुद्ध विद्रोह का झंडा खड़ा किया और श्रागरे से भाग कर
लाहौर आया । गोंदवाल में वह गुरु साहब द्धी सेवा में भी उपस्थित
हुआ । उन्हों ने 'शहज्ञादे के साथ सहाजुभूति प्रकट की । चंदूशाह के
षडयंत्र से यष बात सम्राद् के कानों तक पहुँचाई गई। जहाँगीर
ने, जो सिख मत के पहले से ही विरुद्ध था, गुरु साहब पर
दो ज्ञाख रुपए जुरमाना कर दिया। परंतु उन्हों ने जुरमाना दने से
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