ज़िन्दगी मुसकराई | Zindagii Musakaraai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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No Information available about कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' - Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृष्ठभूमि ११
कितनी बार मैंने उस दिनके बारेमें सोचा, दूसरोंसे पूछा और तब कहीं
मुश्किल तमाम सोमवार आया। डाकख़ाने गया, 'সনাঘ' आया, बाँसों उछ-
लते दिल उसे खोला, खोजा, पर उसमे कहीं मेरा लेख न था । जीवनकी
वह सबसे बड़ी असफलता थी - ऐसा धक्का मुझे फिर बादमें भी कभी नहीं
लगा। धरती घूम गयी; आकाश टूट गिरा और घर आया, तो हिचकियों रोया।
रोकर सो गया, सोकर उठा, तो वही उधेड़-बुन । दोनों लेख पढ़कर
अपना लेख पढ़ा और क्या बताऊ, मुझे तो अपना ही लेख सर्वोत्तम जंचा।
मेने उसकी फिर नकल को ओर गणेराशंकरजीको एक पत्र लिखा । इस पत्र-
में उनकी महत्ताके गब्बारे थे, तो उनके सहकारी सम्पादकोंकी अज्ञानताके
नारे भी थे । कहा था : वे लोग रचनाओंका महत्त्व नहीं समझते, सिर्फ़
प्रसिद्ध छेखकोंका नाम देखकर ही केख-वेख छाप देते हँ । सावधान किया
गया था कि इससे आपके यशमें धब्बा लगता है ओर प्रताप को बहुत नुक-
सान होता हैं। अपने लेखको पूर्ण, उपयोगी और सर्वोत्तम कहा गया था।
यह पत्र रजिस्ट्रीसे उनके नाम भेजा गया था : आशा है यह पत्र आपको निजी
समयमें मिलेगा ओर मुझे अपने सहकारियोंके अत्याचारसे बचा सकेंगे । उस
समय यद्यपि बेचारे कन्हैयालालजी मध्यमाके चतुर्थ खण्डकी परीक्षामें फल
हुए विद्वान् थे, पर अपने प्रह्मरको प्री शक्तिदेनेके लिए लेखके नीचे लिखा
गया था : लेखक कन्हँयालाल मिश्र शास्त्री ।
लिफ़ाफ़ा भेजा, तो साँस आया - अब देखूँगा कि ये टुटपूजिए सहकारी
कैसे मेरा लेख रोकते हैं !'
पाँचवें दिन एक कार्ड आया। छोटे-छोटे अक्षरोंमें स्वयं गणेशशंकरजीने
लिषा था : तुम्हारी वातोंसे सहमत नहीं हूँ, पर तुम्हारे उत्साहकी क्॒द्र
करता हूँ। लेख ठीक करके दे दिया हैँ, इसी अंकमें जा रहा है । में भविष्य-
वाणी करता हूँ कि तुम शीघ्र ही एक प्रसिद्ध छेखक हो जाओगे ।
रोम-रोममें खुशी फूट निकली और सोमवार तो अगला युग ही हो
गया । डाकखाने गया, 'प्रताप' आया, वहीं खोला, अपना छपा नाम देखा
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