श्रीरामकृष्णवचनामृत भाग - 1 | Shriramakrishnvachanamrit Bhag - 1

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Shriramakrishnvachanamrit Bhag - 1  by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५9 दोनों चोर्जा को म्लते मलते भी गंगाजी की धार में बहा देते थे । माता चन्द्रामणि को श्रीरामकृष्ण जगजननी का रवरूप मानते थे ॥ अपने ज्येष्ठ प्राता श्री राम्कुमा८ के स्वगै-लाम के बाद श्रीरामकृष्ण उन्हें. अपने ही पास रखते थे ओर उनकी पूजा करते थे । मथुरबाबू तथा उनकी स्त्री जगदबा दासी के साथ वे एक बार काशी, प्रयाग तथा वृंदावन भी गए थे | उस समय हृदय महाशय भी साथ में थे । काशी में उन्होंने मणिकाणिका में समाधिस्थ होकर भगवान्‌ शंकर के दशन किए ओर मौनत्रत धारी चैलंग स्वामी से भेंट की | मथुरा में तोः उन्होंने साक्षात्‌ भगवान्‌ आनंदकंद, सब्िदानंद, अंतर्यामी श्रीकृष्ण के: दशन किए । केसी उच्च भाव दशा रही होगी ! ˆ सेस मदेस गनेस, सुरस जाहि निरंतर ग्वे, जाहि अनादि अनन्त अखण्ड अचेद अभेद सुवेद बतावें । --भीरसखानि उन्हीं भगवान्‌ श्रीकृष्ण को उन्होंने यमुना पार करते हुए गौओं को गोधूलि समय वापस आते देखा ओर धुव धार पर से वघुदेव की गोद में. भगवान्‌ श्रीकृष्ण के दशन किए । भरीरमङ्ृष्ण तो कभी कमी समाधिस्थ हो कह प्डतेये, ' जो राम थे और जो कृष्ण ये वही अब रामक्ृष्ण होकर आया है। ? सन्‌ १८७९---८० में भीरामकृष्ण के अन्तरंग भक्त उनके पास




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