कलम, तलवार और त्याग | Kalam Talavaar Aur Tyaaga

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Kalam Talavaar Aur Tyaaga by प्रेमचंद - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ कलम, तलवार ओर त्याग जिक्षको जातीय त्वाधीनता कद्ते हैं। जब मरा तो उसके पास अपनी वज्घातिनी तत्नवार भोर थोड़े-से सच साथियों के सिवा राजसिक वैमव का श्रौर को सामान न था, जितने मित्र श्रौर सायक ये सवया तो सत्‌-धमं का पालन करते हुए वीरगति प्राप कर चुकरेये या भरकवरी हइकबाह्नका दम मले ल्गेथे, पर्‌ यह्‌ अर्किचन मृत्यु उस सुनहरे सिहासन पर तथा मित्र शुमचिन्तर्को के उस जमघट में मरने से हजार दर्जे ्रच्छी है जो जाति की स्वा- धीनता, भात्मा की दासता भोर देश के भपमान के बदले मं मिले हों । परताप उदयसिंह का बेटा ` श्रौर शेरदिल दादा सांगाका पोता था। राणा सांगा ओर बाबर के संग्राम इतिहास के पृष्ठों पर अकित हैं, यद्यपि राणा की पराजय हुईं पर स्वदेशी रक्षा में श्रपना रक्त बहाकर उसने सदा के लिए अपना नाम उञ्ज्वल्ल कर लिया । उसका बेटा उदयर्सिह बाप के वीरोचित गुणों का उत्तरा- धिक्कारी न था | कुछ दिर्नो तकृ तो वह चित्तोड को मुगर्लो के द्वारा पादाक्रांत होने से बचाता रहा, पर ज्योंही श्रकपर के तेवर बदले देखे शहर जगमत्न को सिपु्द करके शरोली की पहाड़ियों में जा छिपा, ओर वहाँ एक्र नये नगर की नींव डाल्ली जो भाजतक उसके काल ते उदयदुर मशहूर है । जगमल ने जिस वीरता से शत्रु का सामना किया, चित्तोड़के सत्र वीर जिस तरह सिर




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