गांधीजी की यूरोप - यात्रा | Gandhiji Ki Yurop - Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ 1
आदमी थ, लकिन बाद में बहुत कुछ गड़बड़ी हो गई है |” गाँधीजी ने गंभीर मौत
धारण कर इन शब्दों को सुना ; लेकिन जब फिर बादशाह ने पूछा कि आपने मेरे बेटे
का बहिष्कार कथो किया तब गाँधीजी ने जवाब दिया--“आपके बेटे का नहीं,
बल्कि ब्रिटिश ताज की सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि का बहिष्कार किया गया है |
तब सम्राट आगे बढ़कर बोल उठे--“किसी भी देश में राजद्रोद्द माफ़ नहीं किया जा
सकता ; सरकार को अपना शासन-यंत्र चलाने के लिए उसे दबा देना ही बाहिए |! -
ये शब्द सम्राट ने कहे इसलिए भी सहन करके चुपचाप नहीं रहा जा सकता था ।
गाँधीजी ने अपने स्वाभाविक शिष्टाचार के साथ टढ़ता से कहा--“इस विषयमे म
वाद्-विवाद् कष्टं, इसकी तो आप आशा भी नही करते !'
ऐसी ही साफ़-साफ़ बातें उन्होंने रोम में मुसोलिनी से भी कही थीं मुसोलिनी
ने गाँधीजी को खुश करने के लिए पूछा- क्या तुम यह नहीं चाहते कि स्वतन्त्र
हिन्दुस्तान हमारी इटली से লী सम्बन्ध स्थापित करे १ गाँधीजी इस बात का आशय
समभ गये ; वे उस बात से लभा जाते, ऐसा तो था ही नहीं ; बोले -- 'मेरी कल्पना
का स्वतन्त्र हिन्दुस्तान, सिफ़ इटली नहीं बल्कि सारी दुनिया से मित्रता रखकर
रान्ति से रहना चाहेगा 1 तब उस फासिस्ट डिक्टेटर ने पुनः व्यंग्य झे पूछा - क्या
तुम सचमुच यह मानते हो कि अहिंसा से हिन्दुस्तान को आज़ादी मिल जायगो ?
मेने जो यह फासिम्ट ठन्न से सेनिक-राज्य का निर्माण किया है, इसके विषय में आपका
क्या खयाल है 2 गांधीजी ने सत्यवक्ता की तरह स्पष्ट शब्दो में कह दिया--भ्ुभे तो
लगता है, यह आपका खयाली महल ही होकर रहेगा |”
रोम के सीन्यौर गायडा ने अपने ““ज्यौनंल-डी-इटालिया” नामक पत्र में गाँधोजी
की जो 'मुलाक़ात' प्रकाशित को थी, उसका उल्लेख “गाँधीजी को यूरोप-यात्रा'
में किया गया है। यह 'मुलाक़ात' शुरू से आखिर तक बनावटी थो । जब गाँधीजी
वित्वन में महर्षि रोमाँ रोलाँ के यहाँ ठहरे, तब महर्षि ने गाँधीजी को वहाँ के छल-
कपट से सावधान करते हुए कहा--“आप किसी भी नये आदमी को सामने हाज़िर
रखे बिना किसी भी इटलोवाले से न मिले । स्वदेश पहुँचने के पहले ही गाँषीजी ने
'सबिनय-अवज्ञा-आन्दोलन! की योजना तेयार कर ली है, यह बात भो सही न थी ।
वे तो यहाँ तक कोशिश करना चाहते थे क्रि अगर 'गोल्मेज़-परिषद्' के अबरशेषों में
से कुछ अंश बचाये जा सके तो बचा लें; वे इस बारे में एकदम निराश भी न हुए
User Reviews
No Reviews | Add Yours...