गांधीजी की यूरोप - यात्रा | Gandhiji Ki Yurop - Yatra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gandhiji Ki Yurop - Yatra by रंजन शर्मा - Ranjan Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रंजन शर्मा - Ranjan Sharma

Add Infomation AboutRanjan Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ६ 1 आदमी थ, लकिन बाद में बहुत कुछ गड़बड़ी हो गई है |” गाँधीजी ने गंभीर मौत धारण कर इन शब्दों को सुना ; लेकिन जब फिर बादशाह ने पूछा कि आपने मेरे बेटे का बहिष्कार कथो किया तब गाँधीजी ने जवाब दिया--“आपके बेटे का नहीं, बल्कि ब्रिटिश ताज की सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि का बहिष्कार किया गया है | तब सम्राट आगे बढ़कर बोल उठे--“किसी भी देश में राजद्रोद्द माफ़ नहीं किया जा सकता ; सरकार को अपना शासन-यंत्र चलाने के लिए उसे दबा देना ही बाहिए |! - ये शब्द सम्राट ने कहे इसलिए भी सहन करके चुपचाप नहीं रहा जा सकता था । गाँधीजी ने अपने स्वाभाविक शिष्टाचार के साथ टढ़ता से कहा--“इस विषयमे म वाद्‌-विवाद्‌ कष्टं, इसकी तो आप आशा भी नही करते !' ऐसी ही साफ़-साफ़ बातें उन्होंने रोम में मुसोलिनी से भी कही थीं मुसोलिनी ने गाँधीजी को खुश करने के लिए पूछा- क्या तुम यह नहीं चाहते कि स्वतन्त्र हिन्दुस्तान हमारी इटली से লী सम्बन्ध स्थापित करे १ गाँधीजी इस बात का आशय समभ गये ; वे उस बात से लभा जाते, ऐसा तो था ही नहीं ; बोले -- 'मेरी कल्पना का स्वतन्त्र हिन्दुस्तान, सिफ़ इटली नहीं बल्कि सारी दुनिया से मित्रता रखकर रान्ति से रहना चाहेगा 1 तब उस फासिस्ट डिक्टेटर ने पुनः व्यंग्य झे पूछा - क्या तुम सचमुच यह मानते हो कि अहिंसा से हिन्दुस्तान को आज़ादी मिल जायगो ? मेने जो यह फासिम्ट ठन्न से सेनिक-राज्य का निर्माण किया है, इसके विषय में आपका क्या खयाल है 2 गांधीजी ने सत्यवक्ता की तरह स्पष्ट शब्दो में कह दिया--भ्ुभे तो लगता है, यह आपका खयाली महल ही होकर रहेगा |” रोम के सीन्यौर गायडा ने अपने ““ज्यौनंल-डी-इटालिया” नामक पत्र में गाँधोजी की जो 'मुलाक़ात' प्रकाशित को थी, उसका उल्लेख “गाँधीजी को यूरोप-यात्रा' में किया गया है। यह 'मुलाक़ात' शुरू से आखिर तक बनावटी थो । जब गाँधीजी वित्वन में महर्षि रोमाँ रोलाँ के यहाँ ठहरे, तब महर्षि ने गाँधीजी को वहाँ के छल- कपट से सावधान करते हुए कहा--“आप किसी भी नये आदमी को सामने हाज़िर रखे बिना किसी भी इटलोवाले से न मिले । स्वदेश पहुँचने के पहले ही गाँषीजी ने 'सबिनय-अवज्ञा-आन्दोलन! की योजना तेयार कर ली है, यह बात भो सही न थी । वे तो यहाँ तक कोशिश करना चाहते थे क्रि अगर 'गोल्मेज़-परिषद्‌' के अबरशेषों में से कुछ अंश बचाये जा सके तो बचा लें; वे इस बारे में एकदम निराश भी न हुए




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now