औपनिवेशिक भारत में संस्कृति और विचारधारात्मक संघर्ष | Aupniveshik Bharat Mein Sanskriti Aur Vichardharatmak Sangharsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनीसवों सदी के भारत को बौद्धिक परिघटनाएं ७ 17 में विलंब की कोई गुजाइश नहीं थी, और इसलिए उन्होंने प्रौद्योगिकी, कृषि और जहाज- निर्माण के स्कूलों की स्थापना को हिमायत की /* विद्यासागर, महादेव गोविद रानाडे, सैयद अहमद खों ओर ्वरिशलिगम ने भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा वैज्ञानिक ज्ञान कौ সাদি परउतना हौ जोर दिया? केशवचंद्र सेन विज्ञान के अभ्यास के अभाव कौ अंग्रेजी राज द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का प्रमुख दोष मानते थे 1” वैदिक ज्ञान के पीछे अपनी दीवानगी के बावजूद दयानंद और आर्यसमाजी भी विज्ञान की शिक्षा के महत्व को स्वीकार करते थे /” चैज्ञानिक विपयों को न केवल दयानद ऐंग्लो-वैदिक संस्थाओं के पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया बल्कि गुरुकुल कांगड़ी के पाठ्यक्रम में भी उनका समावेश किया गया विज्ञान की शिक्षा पर यह जोर इस बढ़ते हुए एहसास का परिणाम था कि वैज्ञानिक ज्ञान देश कौ प्रगति ओर आधुनिक चितन तथा संस्कृति के विकास के लिए निर्णायक महत्व की बात है ° ौद्धिक जन सामाजिक समस्याओं के प्रति बुद्धिसंगत दृष्टिकोण के विकास के लिए विज्ञान के मौजूदा ज्ञान के प्रसार के महत्व को परचानते थे, साथ ही वैज्ञानिक विषयों के उच्चतर अध्ययन की आवश्यकता का भी उन्हें उतना ही अधिक भान था, क्योकि इस तरह के अध्ययन से ही भारतीयों के बीच वैज्ञानिक पैदा होगे, जो प्रकृति कै सत्यो का अवगाहन क्ते, उनके नियमो कौ खोज करगे ओर उन्हे हमारे भौतिक तथा नैतिक लाभ एव बृहत्तर मानवता कौ सामान्य प्राति की दिशां मोदेगे 1 उद्देश्य 'संयोग से विज्ञान के युग में उत्पन्न हो गए मनुष्यो के स्थान पर वैज्ञानिक मानवो कीसृष्टिकाथा^ अपनी ओपनिवेशिक आवश्यकताओं के ढांचे के अंतर्गत काम करते हुए, अंग्रेजी एज कौ दिलचस्पी न तौ वैज्ञानिक ज्ञान के आम प्रचार-प्रसार मे थो ओर न भारतीयों को उच्यत वैज्ञानिक अध्ययन में प्रवृत्त करने में ।इस सरकारी उदासीनता के प्रति भारतीय बौद्धिक जनों का रुख बहुत आलोचनात्मक था। केशवचंदर सेन कौ दृष्टि में, मौजूदा शिक्षा पद्धति की सबसे जीती-जागती कभी वैज्ञानिक अध्ययन के अभ्यास के अवसरों का अभाव थी # महेद्रलाल सरकार ने अपनी राय जाहिर करते हुए लिखा, “मुझे कहना होगा कि सरकार ने इस देश के वतन भेटिव निवासियों द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन के अभ्यास का अब तक कोई अवसर सुलभ नहीं कराया है और न उसके लिए कोई प्रोत्साहन दिया है ।'” जो चीज भारतीय विद्यार्थियों को वैज्ञानिक अध्ययन से रोक रही है वह है 'अवसर का अभाव, साधनों का अभाव और प्रोत्साहन का अभाव | भारतीयों ने विज्ञान में रुचि जगाने, वैज्ञानिक ज्ञान का प्रचार करने और वैज्ञानिक अध्ययन को प्रोत्साहन देने के लिए कई प्रयल किए। 1825 में कलकत्ता में सोसायटी 'फार ट्रॉस्लेटिंग यूरोपियन साइंसेज (यूरोपीय विज्ञान के अनुवादार्थ संस्था) स्थापित को गई।इस संस्था ने वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसार के ध्येय को लेकर चलने वाली विज्ञत्र सेबदी




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