आधुनिक राजनीतिक विचारधाराएँ | Adhunik Rajneetik Vichardharayen
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
287
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)76 आधुनिक राजनीतिक विचारधाराएं
पर मान लोजिए किसी ने बाधाओं को उपस्थित कर दिया, तब वया हो ? ऐसी
स्थिति में व्यक्ति अपने अधिकारों की माँग करता है, श्र्थात् वह चाहता है कि उसे
ऐसी परिस्थितियाँ मिलें जिससे वह श्रपने वास्तविक हितो का सम्पादन कर सके ।
इस रूप मे अधिकार व्यक्ति की वे शर्तें हैं जिनके भ्रन्तगंत वह स्वतन्वता की प्राप्ति
करता है । पर यहाँ पुनः एक भ्रश्न पंदा होता है । यदि समाज मे कोई व्यवित के
अधिकारों को प्रस्वीकार करे प्लौर उनकी अवहेलना करे तो ? ऐसी स्थिति मे
अधिकारों के सरक्षण का प्रश्न पंदा होता है। सरक्षण कोई सप्रभु पश्रथवा सर्वोच्च
सस्था ही दे सकती है । वह राज्य है। भर्थात् व्यक्ति के प्रधिकारों के सरक्षण के
लिए राज्य झावश्यक है ।
इस प्रकार ग्रीन के विचारो का प्रारम्भ मानव चेतना की स्वतन्त्रता से होता
है भ्रौर प्रनत राज्य की भ्रनिवायंता को स्वीकार करने में होता है। बाकर के उपरोक्त
कथन से प्रकट है कि श्रीन के राजदशन की तीन बातें प्रमुख हैं--(श्र) मातव चेतना
स्वतन्त्रता चाहती है , (ब) स्वतन्त्रता के लिए अधिकार चाहिएँ ; प्रोर (स) ब्रधि-
कारों के लिए राज्य प्रावश्यक है। इस क्षम मे यह तथ्य सहज ही स्पष्ट हो जाता
है कि राज्य एक भरवश्यक और नैतिक सस्थाहै।
स्वतन्त्रता
ग्रीन की स्वतन्त्रता सम्बन्धी प्रवधारणा पर कान््ठ का प्रभाव स्पष्ट है।
कास्ट के अनुसार स्वतन्त्रता स्व-निर्मित सर्वमान्य कत्तंब्यो का पालन करना है।
नैतिक इच्छा ही एकमात्र भहत्त्वपूर्ण इच्छा है। स्वतन्त्रता का तात्पय॑ इस नैतिक
इच्छा की स्वतन्त्रता ही हो सकता है। स्वतन्त्रता के सम्बन्ध मे प्रीन का यह् प्रिद
कथन है कि “स्वतन्त्रता का प्रभिप्राय उन कार्यों को करने तथा उपभोग करने की
सकारात्मक शक्ति से है जो करने भ्रथवा उपभोग करने चाहिएँ।॥”! प्रीन के इस कथन
से यह स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता हस्तक्षेप का अभाव मात्र नही है, ऐसा होने पर बहू
केवल नकारात्मक ही रहेगी । व्यक्तिवादियो की स्वतन्त्रता की धारणा ऐसी ही है ।
बहू मनमानी करने की छूट भी नही है। यदि ऐसा है तब तो स्वतन्त्रता उच्छुद्धलता
हो जायेगी । ग्रीन के भ्नुसार स्वतन्त्रता करने योग्य कार्यों को ही करने की सुविधा
है, भ्र्थात् वह सकारात्मक है। ये करने योग्य कार वे हैं जो हमारी प्रात्मोप्नति
भ्रौर मानव चेतना के विकास मे सहायक हो शऔैर विधिसम्मत हों। स्वतन्त्रता केवल
शुभ इच्छा की ही स्वतन्त्रता हो सकती है | वार्कर का कहना है कि म्रीन की स्वत
न्वत के दो लक्षण हैं--प्रथम यह कि वह सकारात्मक है, प्रौर द्वितीय यहू कि वह
निदचयात्मक है, भ्र्थात् यह निश्चित (उचित) कार्यों को ही करने की होती है, मन-
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