अंतर्राष्ट्रीय कानून | International Law
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
890
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)2 प्रन्तर्राष्ट्रीय कानून
प्रन्तर्राष्ट्रीय कानूद का पालत और अन्तर्राष्ट्रीय सस्याओ्रों का निर्माएं प्रसाघारण
महत्त्व रखते हैं। जिस प्रकार एक राज्य के नागरिकों के प्रापप्षी सम्बन्ध भोर
व्यवहार उक्ठ राज्य के देशी या राष्ट्रीय कानून (०७०७० 1.3 9७) से नियन्त्रित
होते हैं, उसी प्रकार भ्रत्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र मे विभिन्न राज्यों के भापसी सम्बन्धों का
वियमन प्रस्तर्राष्ट्रीय कानून द्वारा होना चाहिए 1 यदि सम्य और सम्प्रभु राष्ट प्रपते
व्यवहार के लिए स्वीकार किए गए परम्परागत झौर नवरस्थापित निय्मी को दुकूराते
हैं ठो फिर 'उम्य! झौर 'प्रसम्प! राज्य का हरस्तर कोई मायने नहीं रखता । इसी
बात की प्रोर सकेत करते हृ हीनः, हनः, हज भादि विदानो ने यद लिखा है
के राष्ट्री के हमाज का सदस्य बनने घोर प्म्तर्शष्ट्रीय कानून के लागू होते से पूर्व
'सम्य' होना जहरी है। प्रावागमन प्रौर घचार साधनों के विकास के सापृ-साप
झाज (एक संसार! (07० ७४०7४) की घारणा साकार होती जा रही है| परत,
इस “एक ससार!”के सदस्यों (राष्ट्रों) के भ्राचरण को नियमित करने वाली
परम्पराप्रों, रूढियों भ्रौर कानूनों का नि सन्दिग्ध महत्व है।
भ्रग्तर्राष्ट्रीय कानून का स्वरूप
(लिड ০৫ 17060509081 [আদ )
जब हम धन्तर्राष्ट्रीय कानून के स्वरूप (?४३/०:८) की बात करते हैं तो हमे
अनेक पहलुधो पर विचार करना होता है। मुख्य रूप से यह देखना होता है कि
प्रस्तर्राष्ट्रीय कानूत की परिभाषा क्या है, प्रस्तर्राष्ट्रीय कानून को वाहतव में 'कालूत'
कहा जाना चाहिए या नही, नियम (७०) और कानून (1.3७) मे क्या भ्रस्तर
है, भम्तर्राष्ट्रीय कानून के भ्रावश्यक तत्त्व क्या हैं, प्रस्तर्राष्ट्रीय कानून किस प्रकार
एक गतिशील प्रकृति लिए है, भन्तर्राष्ट्रीय कानून के स्वरूप में सवुक्त राष्ट्रसघ की
स्थापना भौर भ्रत्य कारणों से क्या परिवर्तन उल्नन्न हुए हैं, प्रन्तर्राष्ट्रीय कानून के
निर्माण में नई प्रवृत्तियाँ क्या हैं भादि ।
प्रन्तर्राष्ट्रीय कानून की परिमाषाएँ. *
(10601010095 91 1016708050021 2৬
दैतंपान समय मे সন্বিখাজটীফ कानन शः के सर्वेप्रधम प्रयोग का
श्रेय सुविश्यात ब्रिटिश विधिशास्त्रो র্ -1832) को दिया जाता
दै जिसने सनु 1780 मे 'प्रन्तर्राष्ट्रीय कातूत' (10/८778007व 1.3७) शब्द
रचना की । इससे पूर्व राष्ट्रों के भ्रापसी सम्स्धों भ्ौर सम्पर्क को नियत्रित करने
बाले नियमों को लेटिन में *राष्ट्रो का कानून! (070 १०३ 2९05) कहा जाता
या। बेयम ने इसके स्थान पर 'प्रन्वर्रोष्ट्रीय कानून! (0500 ०९२९ 0९5 टय}
शब्दों के प्रयोग को उचित माना झौर तक दिया कि यह परिभाषा विछली परिभाषा
राष्ट का कानून मे भ्रविङ स्पष्ट प्रोर घोघषणस्प है $
1 मण, म ও ছাতা ० लातत [হত 14.
1117
3 १२०७१९०, © 2.7 #क्रलाएव 0 65309 उरण ०२1, उ 09306 155
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