राजस्व के सिध्दान्त एवं भारतीय वित्त व्यवस्था | Rajasva Ke Sidhdant Avam Bhartiya Vitt Vyavastha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च 1 राजस्व को लौटा देती हैं, जैसे कुछ तो ठेकेदारों को दे देती है, कुछ सरकारी दर्मचारियों को उनकी सेढ़ागओं के बदले दे देती है और दुछ पेंदाय, बेरोजगारी श्रादि के वीमे के रूप में दे देती है क्‍्रौर वुछ शिक्षा, चिकिस्सा पश्रादि वा भ्रवस्ध वरके खर्च कर देती है! इन सब का प्रभाव घन की उत्पत्ति तथा वितरण पर पड़ता है । 'राजकीय व्यय का उत्पति प्र जौ प्रमाव पहता हं वह उत्पादन शवित বতন से पडता है। उत्पादन-अक्ति खढ़ने पर कम से कम परिश्रम द्वारा श्रधिक से अधिक उतत्ति प्राप्त करती जाती है।इस के कारण प्राधिव स्राधनो का कम से वम दुष्पयोग होता है । वितरण पर पडा हुआ प्रभाव समाज में धन की प्रसमानता को कम बरता है । इसके अ्तिणििद व्यक्तियों तथा परिदारों को इस बात था अवप्तर प्राप्त होजाता है कि वे समय समय पर होने नाली प्राय कौ प्रसमानता नौ क्म कर छक्के । यह प्रसमानता बुढ़ापे की प्रेल्मान तथा पारिवारिक भत्तो द्वारा कम हो जाती हैँ । इस प्रकार मह कहना अनुचित न होगा कि राश्कीय व्यय द्वारा भ्रधिकतम লা हित होता है 1 यहं जानने के लिए कि राष्ट्रीय प्राय-ध्यय के द्वारा श्रधिवतम समाज हित हृ कि नही हमें निम्नलिखित बाता पर ध्यान देना होगा। प्रथम हमें, यह देखता चाहिए कि प्रमुक राजवीय व्यय किस उद्देश्य से किया गया है। यदि बोई व्यय विसी बडी प्राधिक योजना को सफ्ल बताते মহা বিঘা विदेशी आ्राश्ममण यो रोकने के लिए किया गया है तो वह उचित हूँ चाहे उस पर खर्च की गई घत-राभि मात्रा में कितती भी क्यो ने हो। उससे समाजिय हित वी यूद्धि होती है। परन्तु थदि नोई राजवीय व्यय इन उद्देश्यों के लिए नहीं किया गया है तो वह समाज हित को कम करता है चाह उस वर खर्ज क्या गया धन कप ही क्यों न हो । दूसरे, कर-पद्धति के स्वरूप और उसकी प्रणाली पर भी ध्यात रखता पड़ेगा। भिन्‍न मिलने प्रकार के करा द्वारा समान ग्राम प्रप्त की जा सक्ती है, परतु शुछ करा का भार दूसरों से प्रधिक प्रतीत होता है। इस कारण समाज-हिंत उस कर द्वार बढ़ता है जिसका भार बरदाता पर कम से कम पढ़े ! तीसरे, हमें यह भी देखना पड़ेगा कि करो का देश वी उत्पादन शक्ति पर कैसा प्रभाव पड़ता हैं। यदि कर प्रणाली वा यह प्रभाव होता है कि उसके वारण लोगो की धन बचाने वी इच्छा तया उतवी द्यवि वपर दोनी ह तो उससे सामाजिक हित नहीं बढता 1 হু নাহ খু হত সর ই নি হব व्यय दा फिट शिण सामाजिकं दित তীনা আতিহি | অহ उचित इजु से बर लगाने तथा श्राप्त विष्ठ गए ঘন কী লিন হজ से व्यय करने पे प्राप्त हो सबता हैं ।




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