नयी कहानी का समाजशास्त्र | Nayi Kahani Ka Samajashastra

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Nayi Kahani Ka Samajashastra by ऋचा सिंह - Richa Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 नयी कहानी का समाजशास्त्र उपर्युक्त वर्णित छ: प्रयोजन यश, धन, व्यवहार कुशलता, अमगल से रक्षा, आनन्द तया कान्ता के समान मधुर उपदेश, जीवन के सर्वमान्य उपयोगी तथा श्रेयस प्रयोजन ह। विश्च की समस्त ज्ञात सप्यताओ, संम्कृतियो का प्रधान उद्देश्य ही जीवन को श्रेष्ठ, उदात्त एवं आनन्दमय वनाना रहा है। मनुष्य भौतिक सुखो, मनन-चिन्तन, सोच व साहचर्य के साय ही सत्य, सौन्दर्य, शिव की आकांक्षा मे निरन्तर कर्मं सलग्र है। साहित्य भौतिक सुखो, दार्शनिक चिन्तनो मे सामंजस्य स्थापित करके उसे अनन्द की ओंर अग्रगामी बनाता है। साहित्य का सत्य, जीवन का यर्थाय होता है पर वह उसे आदर्शं को चासनी में सयबोर करके पाठक, भावुक, दर्शक के सामने रखता है जिससे समाज का उन्नयन होता है। समाज शुद्ध एवं परिष्कृत होता है। साहित्य समाज के बाह्य और आन्तरिक जीवन को प्रभावित, परिचालित तथा परिष्कृत करता है। जीवन मे सुन्दरता, मधुरता, सरसता तथा व्यापकता के लिये संरचना को जीवनोन्मुखी बनाना साहित्य का चरम लक्ष्य माना जाता रहा है। साहित्य मातृवत पालक है, पितृवत संरक्षक है, गुरुवत परम शिक्षक है। रचनाकार समाज से ही उभरता है और रचना की प्रेरणा रचना के तथ्य समाज के भीतर से ही चुनता है। व्यवस्था, परिवेश, रीति-नीति तथा लोक-व्यवहार की प्राथमिक पाठशाला समाज ही होता है अतएव समस्या व समाधान दोनो के लिए साहित्य को समाज का मुखापेक्षी रहना पड़ता है। साहित्यकार अपने समाज एवं समय दोनो का प्रतिनिधि होता है। इस विवेचन से स्पष्ट है कि साहित्य समाज का नियामक एवं उत्नायक दोनों होता है। समाज एवं साहित्य अन्योन्याश्रित है साहित्य विवेचक और उनकी दृष्टियाँ पाश्चात्य विचारको के साहित्यिक-समाजशास्र के पुगेधा-- 'इपॉलिट अडोल्फटेन! हैं सामान्यतः टेन, लियोलावेबल, लूमिए गोल्डमान और रेमण्ड विलियम्स को पाश्चात्य साहित्य समाजशासत्रीय समीक्षा का पुग्रेधा माना ज्ता ९! फ्रांस मे समाजशास्तीय चिन्तन की परम्परा से सुदृढ़ आधार और उसका सक्षम प्रयोग इपॉलिट अडोल्फटेन ने किया। मादाम स्टेल की प्रसिद्ध पुस्तक “सामाजिक सस्याओं के साहित्य के सम्बन्ध पर्‌ विचार १८०० ई० की कृति है। क्रन्तिकारी विचारे की महिला स्टेल को नेपोलियन की तानाराही का विशरेध करने के कारण फ्रांस छोड़ना पड़ा था। जहाँ से पलायन करके वह जर्मनी चली गयी थी। आगे चलकर टेन ने उनके विचाणे को पर्याप्त विकाम एवं विस्तार दिया। जर्मनी के फ्रैंकफुर्त विद्धविद्यातयय मे १९२३ मे एक सामाजिक शोध संस्थान की स्थापना हुई थी। अडोर्नों, हर्वट मारकुस तथा लियोलावेबल, फैंकफुर्त समुदाय से जुड़े हुए विचारक थे। अढोर्नो सौन्दर्यस्य या तया मारकुस दार्शनिक दोनों आधुनिकता के समर्थक ये! तिथोतवैयल मे मित्य के समाचशाख कौ चर्चा पूर्ववर्ती तेखर्को ओर




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