जशमाचरित्रं | Jashamacharitram
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
देवेन्द्रनाथ पाण्डेय - Devendranath Pandey
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नित्यानंद औपमन्यव- Nityanand Aupmanyav
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७).
, , र वस्तु वृणके समान जानते थे सब.। «
है अन्यकी. चढ़ाई बिना करते न रण थे ॥
दोहा--पथिक तथा सब प्रेजाजन, पायें छाया दान ।
बनवाये सब ओर थे, सफल सुधर उदयान ॥ -
उपवन सुंदरथे सभी ओर फल पुष्प छूगे मन भाये ये ।
राजाने निज जनताके हित यह सुंदर साज सजाये थे ॥
मंजुल रविशोंके तीर तीर छोटी वर नहरें चलती थीं ।
मानो अम्रतकी घाराये, अमृत प्रवाहमें ढलती थीं ॥
প্র कूप बहुत थीं बावलियों जो सबकी थकन मिदाती थीं ।
शाखोंपर चिड़िया चहक चहक नृपकी विरुदावलि गाती थीं ॥
रूयसे मलय अनिल आता ताली पत्तोंकी बजती थी ।
किन्नर मयूर नाचा करता, कोयलूकी सुरी बजती थी ॥
वृक्षोंके हरे शामियाने अति सुंदर छाया करते थे ।
उत्सव होता था वहाँ सदा निज पथिक थकावट हरते थे ॥
जो भी सज्जन जाजाते थे उन सबका स्वागत होता था।
बेले का पादप सबके हित हीरोंके हार पिरोता था ॥
दोहा--दाडिम द्ुमके कुसुम बहु, पाते नवर विकास ।
मानो उत्सवर्में किया करते थे सुप्रकाश ॥
भैरे कलियोंको चूम चूम, मनहारी गाना गाते थे ।
खग झूम झूम कर एक साथ सब मिलकर तान मिलाते थे ॥
दशेन करने जो आते थे मदमस्त समी बन जाते थे ।
सुषमा पाटनकी देख देख, अन्तरसे बलि बलि जाते ये ॥।
डालियाँ डुाकर वृक्ष स्वयं पंखासा वहाँ हिलाते थे ।
'आगत पथिकोंको पत्तों पर रख कर फल मूल खिलाते ये ॥
भनमावन शान्त महीतरू था हीतलू शीतल हो जाता था।
उन वार्गोमिं आ कर क्षणमें, प्रतिबोधित सी सो जाता था ॥
कितने कविजन आकर समोद मन, चाही रचना करते ये ।
कितने भावुक लेखंक प्रवीण पत्नोंके पत्ने भरते थे ॥
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