जशमाचरित्रं | Jashamacharitram

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Jashamacharitram by देवेन्द्रनाथ पाण्डेय - Devendranath Pandeyनित्यानंद औपमन्यव- Nityanand Aupmanyav

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नित्यानंद औपमन्यव- Nityanand Aupmanyav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७). , , र वस्तु वृणके समान जानते थे सब.। « है अन्यकी. चढ़ाई बिना करते न रण थे ॥ दोहा--पथिक तथा सब प्रेजाजन, पायें छाया दान । बनवाये सब ओर थे, सफल सुधर उदयान ॥ - उपवन सुंदरथे सभी ओर फल पुष्प छूगे मन भाये ये । राजाने निज जनताके हित यह सुंदर साज सजाये थे ॥ मंजुल रविशोंके तीर तीर छोटी वर नहरें चलती थीं । मानो अम्रतकी घाराये, अमृत प्रवाहमें ढलती थीं ॥ প্র कूप बहुत थीं बावलियों जो सबकी थकन मिदाती थीं । शाखोंपर चिड़िया चहक चहक नृपकी विरुदावलि गाती थीं ॥ रूयसे मलय अनिल आता ताली पत्तोंकी बजती थी । किन्नर मयूर नाचा करता, कोयलूकी सुरी बजती थी ॥ वृक्षोंके हरे शामियाने अति सुंदर छाया करते थे । उत्सव होता था वहाँ सदा निज पथिक थकावट हरते थे ॥ जो भी सज्जन जाजाते थे उन सबका स्वागत होता था। बेले का पादप सबके हित हीरोंके हार पिरोता था ॥ दोहा--दाडिम द्ुमके कुसुम बहु, पाते नवर विकास । मानो उत्सवर्में किया करते थे सुप्रकाश ॥ भैरे कलियोंको चूम चूम, मनहारी गाना गाते थे । खग झूम झूम कर एक साथ सब मिलकर तान मिलाते थे ॥ दशेन करने जो आते थे मदमस्त समी बन जाते थे । सुषमा पाटनकी देख देख, अन्तरसे बलि बलि जाते ये ॥। डालियाँ डुाकर वृक्ष स्वयं पंखासा वहाँ हिलाते थे । 'आगत पथिकोंको पत्तों पर रख कर फल मूल खिलाते ये ॥ भनमावन शान्त महीतरू था हीतलू शीतल हो जाता था। उन वार्गोमिं आ कर क्षणमें, प्रतिबोधित सी सो जाता था ॥ कितने कविजन आकर समोद मन, चाही रचना करते ये । कितने भावुक लेखंक प्रवीण पत्नोंके पत्ने भरते थे ॥




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