हिंदी लावनी साहित्य पर हिंदी संत साहित्य का प्रभाव | Hindi Lavni Sahitya Par Hindi Sant Sahitya Ka Prabhav

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Hindi Lavni Sahitya Par Hindi Sant Sahitya Ka Prabhav by पुण्यमचन्द 'मानव'- Punyamchand 'Manav'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी लावनी-साहित्य पर हिन्दी सत साहित्य का भ्रभाव॑ प्राक्कथन इस शोध प्रव-य का प्रतिपाद्य विषय है “हिंदी लावनी साहित्य पर हिंदी सात साहित्य का प्रभाव” जिसके चुनाव तथा अध्ययन के उद्देश्य पर प्रकाश डालना आवश्यक प्रतीत होता है । प्रसिद्ध 'धमनीति का शब्द कोष (110) ण०ए4६०९७ 01 एश।हाण चत्‌ 11105) के सम्पादक' जेम्स हैस्टिग्स महोदय कै प्रति सारा विश्व चिर दतन्न है कि उहोंने पहली बार यह लिखकर कि “इतिहास यदि किसी राष्ट्र के जीवन का लिपिवद्ध प्रमाण है ती लोक साहित्य उस राष्ट्र के प्रागतिहासिक जीवन का परिचायक है।” तोक साहित्य (10८ 1(८210४८) के अध्ययन की महृत्ता तथा आवश्यकता वी और साहित्य बै अध्येतामा का ध्यान मृष्ट किया । उसके उपरा-त विश्व के सभी प्रगति पील राष्टराम लो$-सादित्य ঈ सरक्षण, सम्पादन, अनुसधान एव प्रकाशन का भाय प्रारम्भ हुआ । आंधुनिक युग मे, जवकि जगत के छोटे बडे सभी राष्ट्रा मे, कसी न किसी झूप म॑, साम्यवाद के सिद्धाता तथा लोकतात्रात्मक राज्य शासन-व्यवस्था के तत्त्वो को सर्वाधिक मायता दी जा रही है, लोक साहित्य को वही स्थान और महत्त्व दिया जा रहा है, जो परम्परागत काव्य शास्त्रबद्ध विशुद्ध साहित्म को दिया जाता है । विगत चार पाँच दशाब्टियो मं भारत की विभिन्न भाषाआ म पाये जाने वाले लोक साहित्य मेः अध्ययन भा अनेक विद्रानो तया सस्यामो कै द्वारा स्तुत्य काय हमा है । भारत षी शापद हो कोई ऐसी भाषा है जिससे दिसी न िसी रूप में जोक साहित्म उपलब्ध नहीं होता हो । 'लावनी-साहित्यां भारत व॑ लोक साहित्य की एक अत्यन्त समृद्ध तथा सोव प्रिय विद्या है जो ययूनाधिव मात्रा में सभी भाषाओं मे प्राप्त है । (हिंदी! भारत के विद्याल भू भाग मे बोली जाने वाली एक ऐसी भाषा है जिसवी अनेक प्रादेषिक वोलियाँ भी समृद्ध हैं। यद्यपि हिन्दी के लोक साहित्य पर अनेक विद्वाना ने अनुस घान कय काय ज़िया है तो भो यह कहना पढता है कि लावनी साहित्य पर जो भी अध्ययन हुआ है वह अधूरा ही है। प्रस्तुत शोष का यही उद्देश्य है हि लावनी साहित्य बे' उस अश क्षा उद्धाटनं दिया जयि जो मद तक्‌ मद्वा एदा




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