संबोध सत्तरी प्रकरण | Sambodh Stari Prakaran
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७)
रेसे गुर आप संसार से तिरते है, ओरो को नहीं तिरा सऊते है
॥श॥ गुरु लोह की जहाज सदृश होते हैं. जैसे ोहफी जहा-
ज खुद समुद्र में द्वकर रसातल में पहुंचती है, ओर उम्त
छोटकी जद्दाज में रहे हुए पुरुषों को भी इबाफर रसात-
ल में पहुचादी है, तद्धत पापझारी, नामथारी गुरू फर्मों
से भारी हुए आप रूय संघार सथर मे नरक रूप रसातल
मे पृहूचते ई, ओर उनके आधित रहे दए जनोको भी न-
रफ में पहुँचाते है ॥ उपरोक्त तीन प्रफाररे गुरु के स्वरूप
को समझ कर अफ्नीकार करने लायक सदूगुरु की अड्ी-
कार करना चाहिये उनहीकी सेवा शुश्रूपा भक्ति फरने से
फर्मोसे भव्यात्मा मुक्त होतेह, त्याग फरने योग्य कुगुरुफा
त्याग करना ही चाहिये ॥ ३ ॥
अप प्रथम देय के अठारह दूपण पतलाए जातेंएूँ, इन निम्न-
लिसित १८ दूषणोंकों नष्ट करने से दी देवपना प्राप्त होतादे
शन््नाण कोह मय माण,लोह माया रईय अरई य
निद्रा सोअ अलियवयण,
चोरि मच्छर भया य॥ ४॥
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