रजत शिखर | Rajat Shikhar

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Book Image : रजत शिखर  - Rajat Shikhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रजत शिखर ( कोयल की कक ) लो, जीवन की नव॒ मजरित प्रथम वसंत सी प्राण सखी आ रही इधर ही, राह भूल कर ! या गत स्मृतियों से प्रेरित हो ? कोयर उसका अभिनंदन करता हुं उत्सुक ममं कूक भर! वुह, कुह,--लहरो-से उठते स्वरावेश में मेरे प्राणो को उत्कठा बरस रही हें! मंघो के अंबर में शशि की रजत तरी ज्यों तिरती स्वप्नो सेरगरग कर रिखर फेन के, मेरे प्राणों मे उतराती प्रेयसि की स्मृति निज किशौर लोला का चचरू मुग्ध हास्य भर ! विरल जलद से स्वणं बिम्ब सा उसका स्पदित गौर वेक् हं सतत फलक उठता स्मृति पट मे ! आज उतर आईं वह ज्यों साभार धरा पर नव मधु की इच्छाओं के पंखो में उड़ कर ! ( दूर से प्रवाहित गीत के स्वर ) नत्र वसत क्या लाया ? प्राणो को घाटी मे फिर फूलो का पावक छाया ! सुन कोयल का दाहक कूजन मयुपो का उन्मादक गृजन, स्वप्नो ने अतर्‌ ममर भर कंसा गीत जगाया ! १९




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