रजत शिखर | Rajat Shikhar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajat Shikhar by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

Add Infomation AboutSri Sumitranandan Pant

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रजत शिखर ( कोयल की कक ) लो, जीवन की नव॒ मजरित प्रथम वसंत सी प्राण सखी आ रही इधर ही, राह भूल कर ! या गत स्मृतियों से प्रेरित हो ? कोयर उसका अभिनंदन करता हुं उत्सुक ममं कूक भर! वुह, कुह,--लहरो-से उठते स्वरावेश में मेरे प्राणो को उत्कठा बरस रही हें! मंघो के अंबर में शशि की रजत तरी ज्यों तिरती स्वप्नो सेरगरग कर रिखर फेन के, मेरे प्राणों मे उतराती प्रेयसि की स्मृति निज किशौर लोला का चचरू मुग्ध हास्य भर ! विरल जलद से स्वणं बिम्ब सा उसका स्पदित गौर वेक् हं सतत फलक उठता स्मृति पट मे ! आज उतर आईं वह ज्यों साभार धरा पर नव मधु की इच्छाओं के पंखो में उड़ कर ! ( दूर से प्रवाहित गीत के स्वर ) नत्र वसत क्या लाया ? प्राणो को घाटी मे फिर फूलो का पावक छाया ! सुन कोयल का दाहक कूजन मयुपो का उन्मादक गृजन, स्वप्नो ने अतर्‌ ममर भर कंसा गीत जगाया ! १९




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now