महान देशों का आर्थिक विकास | Mahan Desho Ka Arthik Vikas

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Mahan Desho Ka Arthik Vikas by रमेश चन्द्र शर्मा - Ramesh Chandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 महान देशों का भिक विकाम (एप्त), हाव বিবন্জহীল (77565 16106105617) থা वाल्टर क्राउज (1 1080$6) ने आधिक विकास का अथे प्रतिव्यक्ति वास्तविक भय में दीघंकालीन वृद्धि ' स्वीकार किया टै । एसी वुद्धि रहन-सहन के स्तर मँ सुघारकी पवे-आवदयफता होती है । यहू तभी सम्मव है, जबकि वास्तविक राष्ट्रीय आय में वुद्धि की दर जनसंख्या-वृद्धिकीदर से ऊचीहो। वाल्टर क्राउज के शब्दों में, आर्थिक विकास का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है, जिसका केन्द्रीय उदह्‌श्य ऊंची मौर वृद्धिशील प्रति व्यक्ति वास्तविक आय प्राप्त करना होता 1 विलियमसन ओर मटक के अनुसार, “आधिक विकास का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा किसी क्षेत्र के निवासी उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग प्रतिव्यक्ति वस्तुओं ओर सेवाओं का उत्पादत बढ़ाने में करते हैं ।” ओकुन (0णा7) एवं रिचर्डेसन (रिलाआा0501), जुसावाला (108899 ०19) तथा डी० ब्राइटसिंह (0. 81181109106.) ने आधिक विकास का भयं 'भायिक् कल्याण में वुद्धि बताया है । यह तमी सम्भव है, जबकि प्रति व्यक्ति वास्तविक आय मे वृद्धि के साथ-साथ आय एवं सन्तुष्ट की असमानताए घटती जाये । भीकुन भौर रिचङ्सम के शब्दों में, “अधिक विकास का अभिप्राय वस्तुओं और सेवाओं के बढ़ते हुए प्रवाह के रूप में परिलक्षित भौतिक कल्याण में स्थिर एवं अनस्त वृद्धि से है ।' डी० श्राहटसिहु के अनुसार, “आर्थिक विकास विविधम्ुसखी प्रक्रिया है। इसमें केवल मौप्रिक लाय की वृद्धि ही सम्मिलित नहीं है; अपितु, पूर्ण एवं सुखी जोवन की सृजन- कर्सा वास्तविक आवतें, शिक्षा, जन-स्वास्थ्य, अधिक आराम तथा सामाजिक-आथिक परिधतेन भी सम्मिलित है ।' परिभाषाओं की समीक्षा --राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि! को आर्थिक विकास मानने वाली परिभाषाओं में जनसंख्या-सम्बन्धी परिवतेंतनों की अवद्ेलना को गई है | यदि राष्ट्रीय आय की अपेक्ष। जनसंख्या तेजी से बढ़ती है। तब प्रतिथ्यक्ति आय में गिरावट आ जाएगी, जिते (आर्थिक अवनतिः फा प्रतीक माना जाएगा । प्रतिव्यक्ति भाय मे सतत्‌ बुद्धि को आथिक विकास मानने बाली परिमापाए समाज की संरचना, इसकी संस्थाएं एवं संस्कृति, साधन-प्रतिरूप, जनसंख्या का आकार एवं बनावट, समाज में उत्पादन का समान या असमान वितरण आदि, विषयों की भवहेलना करती हैँ । यदि बढ़ी हुई आय कुछेक व्यक्तियों के अधिकार में चली जाती है या सैनिक उद्दं यों पर ख्चे कर दी जाती है या व्यक्ति अधिक बचत करने लगते हैं, तब प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि के बावजूद जनसाधारण का रहन-सहून का ह्तर तीचा बना रहेगा। | | संद्धान्तिक दृष्टि से “आधिक कल्याण मेँ वुद्धि कौ आर्थिक विकास का ठोस सूचक माना जा सकता है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से यह सम्भव नहीं है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि के बावजूद, आय के असमान वितरण के कारण, आर्थिक कत्याण में बृद्धि सम्भव नहीं होगी। यदि राष्ट्रीय उत्पादन में बद्धि के साथ-साथ कष्ट और




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