अन्ताराष्ट्रिय विधान | Antararastriya Vidhan

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Antararastriya Vidhan by संपूर्णानंद - Sampurnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्ताराष्ट्रिय विधानकी परिभाषा और उसका स्वरूप ३ कड़ा दण्ड देता है, परन्तु राजोंको दण्ड देनेवाला कोई निश्चित व्यक्ति या व्यक्तिसमूह था ही नहीं । यदि किसी अनाचारीको: दबानेमें अपना स्वार्थ देख पड़ा तो दूसरे राज उसे छेड़ते थे अन्यथा बलवान्‌ स्वेच्छाचारी राजोंपर कोई अंकुश न था। संयुक्त राज संघटन के स्थापित होने पर एक बार ऐसा गा कि यह परिस्थिति बदल जायगी | इसमें अभी तो प्रायः सभी राज सम्मिलित हैं । इसके द्वारा पारस्परिक व्यवहारके लिए जो नियम बनें उनको मनवानेका भार भी इसने अपने ऊपर लिया है अर्थात्‌ उनकी अवहेलना करनेवालॉंकों दण्ड मिलना चाहिये। ऐसी दशामें परिभाषाकै प्रायः शब्दके लिए कोई स्थान न रह जायेगा और अस्ताराष्ट्रिय विधान सचमुच विधानः बन जायेगा । परन्तु अब यह आशा निराघार-सी हो गयी है। कभी-कभी छोटे राजोंकों भले ही दबा लिया जाय परन्तु बड़ोंके छिए. यह तो कूयनीति और प्रचारका अखाड़ामात्र रह गया है। यहाँ विधान” शब्दका प्रयोग उन आचार्योंके मतानुसार किया गया है जो ऐसा मानते हैं कि विधान” उस आशाकों कहते हैं जिसके साथ दण्ड निद्वित होता है। अब हमको देखना है कि अग्ताराष्ट्रिय विधानका क्षेत्र क्या है, कब-कब ओर कहाँ-कहाँ उससे काम लिया जा सकता है अर्थात्‌ उसके क्षेत्रका देश और काल्में विस्तार क्या है। एक और तार्य महत्वपूर्णं प्रन है--उससे कोन काम छे सकता है, पर इसका विचार प्रथक्‌ विधानका क्षेत्र अध्याये करिया जायगा । कालका प्रन सीधा है । विधानक्रा उपयोग सब अवस्थाओंमें है। मनु ष्योंके साधारण व्यव. हारसे इसका उदाहरण मिता है । सभ्य जातियोंमें शान्तिकालीन व्यवह्ारके लिए तो नियम हैं ही, लड़ाईतकके नियम होते हैं। शखस््रहीनकों न मारना चाहिये, पेटमें या कमरके नीचे (क) कारु चोट न करनी चाहिये, भागतेकों न मारना चाहिये, यह सब सभ्य संमाजमे व्यक्तिगत लछड़ाईकी नियम हैं। इसी प्रकार राजोंके भी नियम होते हैं। शान्ति- कालीन व्यवहार तो नियमानुकूछ होता ही है, युद्धके समय भी नियमोंका पालन होता है । शत्रुको कहाँतक क्षति पहुँचानी चाहिये, आहतों और बन्दियोंके साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये, प्राणदान कब और कैसे देना चाहिये, इत्यादिके विपयमें भी नियम विद्यमान हैं। तात्पर्य यह है कि सदैव ही नियम बतं जाते है) यों तो अन्ताराष्ट्रिय विधानके लिए कोई ইহাবার रुकावट नदीं है, परन्तु दो-एक बातें ध्यान- में रखने योग्य हैं | अन्ताराष्ट्रिय विधान किसी देशके अन्तःशासनमे हस्तक्षेप नहीं करता । प्रत्येक सरकार अपने देशका शासन अपने ढ॑ं गपर कैती है। यह विधान राजोंके ही बीचमें बता जाता है, पर कभी-कभी एक असाधारण परिस्थिति उत्पन्न हो जाटी है। किसी राजविशेषकों किसी अन्य राजकी प्रजामेंसे किसी व्यक्ति या समुदाय विशेषसे बतंना पड़ जाता है। यह अवस्था दो प्रकारसे उत्नन्न होती है। जिस समय दो देशोंमें युद्ध होता है उस समय तथ्स्थ देशोंके निवासी दोनों (ख) देश लड़नेवाली सरकारोंके हाथ युद्धसामग्ी बेच-बेचकर रुपया कमाते हैं। यह तो कोई सरकार चाहती ही नहीं कि भेरे शत्रुका बल बढ़े, इसलिए वह इस ताकमें रहती है कि जो जहाज शत्रुके हाथ युद्धसाभग्री बेचने जाता हो वह पकड़ा जाय । इस प्रकार तट्स्थ देशोकी प्रजाके जहाजोंकों पकड़ना अन्ताराष्ट्रिय विधानकी विरुद्ध नहीं है। पकड़कर जहाजकों अपने देशमें ले जाते हैं, वहाँ उसके स्वामीपर अभियोग चलाया जाता है और यदि वह अपराधी पाया जाय तो सारा मार जब्त कर लिया जाता है | यह सव भी अन्ताराष्ट्रिय विधानके अनुकूल है । वह तटस्थ ` १ {1111164 3 4005 (12211158.11011




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