आचार्य रामानुज के आविर्भाव के पूर्व विशिष्टाद्वैत वेदान्त का समीक्षात्मक अध्ययन | Aachaarya Ramanuj Ke Aavirbhav Ke Poorva Vishishtadvait Vedant Ka Samikshatmak Adhyayan

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Aachaarya Ramanuj Ke Aavirbhav Ke Poorva Vishishtadvait Vedant Ka Samikshatmak Adhyayan  by शिवकान्त द्विवेदी - Shivkant Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्बत्ति मानते हैं किन्तु उसकी परिणति ठुःखनाजा में करते हैं । जहाँ तक भारतीय दर्शन के उत्पात्तिस्थान का तम्बन्ध है, विद्वानों का विसर है कि ऋग्वेद भें भारतीय दार्शनिक प्रव॒त्ति का बीज प्राप्त होता है, जहाँ यह कहा ग्व है कि सबसे पहले पुरुष ही एकमात्र तत्‌ तत्त्व था और वहीं आगे भी रेहेगा |. वहीं आगे कहा गया है कि उस অন घुरुष्म के मुख ते ब्राहमण, बाहुओं ते क्षत्रिय, ऊस्जों ते वैश्य तथा वैरो ते शुद्र की उत्पत्ति हुई ग्वेद के नारदीय स॒क्‍त में कहा गया है कि तुृष्टि के पहले न लत्‌ था न अलत्‌ था, रजत षातालपर्यन्त पुंथ्वी आदि लीक भी नही ध । अन्तरिक्ष नहीं था तो फिर क्या था १ क्या जल ही जल था १“ इस प्रकार अग्तेद में जिज्ञासाषरक, तत्त्वपरक वाक्यों ते यह तथ्य उदघाटित होता है कि दर्पान की उत्पत्ति जिज्ञासा ते हुई और इसका तज्रोत मुख्यतः: अग्वेद ही है । चूँकि ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद्‌ वेद के ही भाग हैं, इसलिए ये ग्रन्थ भारतीय दर्शन के मल तो क्या त्वयं भारतीय पन है | भारतीय टर्षन का स्वरूप খুন খপ बुला 0 1, 9 खुश कमा भारतीय दर्शन मुलत: आध्यात्मिक है । प्राय: प्रत्येक भारतीय दाईशनिक आत्मा की चत्ता कौ स्वीकार करता है चाहे उसका स्वस्य बढ भी ही । इसी भतो पति परि मिः অঙ্গ के গনি हि जोति किः सजि शि कये भनि जि कनि दि जि को कि ज्म অন্পরাচ। বাত আক |. पुरुष एुवेटं वर्वं यदटभृतं यच्वभाव्यम्‌ । उतामृतत्वस्येशानोी यटन्थेनातिरोहटति ॥ ~ त्रग्वैदट 10/9/2, 2. वही, । 09041 2. ३. नाबटासीन्न सदासीत्तदानीं, नाीद्रनीो नो व्योमा परोयत | क्मावसीवः कुह कत्य शर्मन्नम्भः किमासीत्‌ गहनम्‌ गभीररय ॥ वही, 1 0412941.




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