निर्वाण भूमि - श्री सम्मेदशिखर | Nirvaan Bhumi -- Sammed Shikhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५ ७ ) ই, न्यथा अतीत अनन्त काल को ध्यान सें रखते हुये आगम के प्रकाश में पेतालीस लाख योजन प्रमाण इस मनुष्य क्षेत्र से एसा कौनसा स्थल गमनागमन के योग्य भक्तजनों के लिये बताया जा सकता है, जहाँ से अगशित भव्यास्माश्रों ने सुक्ति मन्द्रि से अवेश ने क्रिया हो १ इसलिये भ्त के साथ सयौद्‌। पूर्वक काय उचित है । उपरेली कोठी के पास चढ़ाई के स्थान मै, सीता नले के पासं ढाल पर तथा पहाड़ की चोटी पर ज्ञत्रपाल का स्थान बना हैं । न्यायमूर्ति झुकरजी का मत | पर्वत के विषय में श्री टी. डो. सुकर्जी, स्थानापन्न एडीशनल बजज, हजारीबाग ने ताः ३१-१०-१६१६ को मुकदमा नं० रेप का विद्नतापू्ं फैसला लिखा था उससे इस शलराज के विषय से बहुत सी उपयोगी बातें विदित होती हैं । “ आजकल पर्वत पर टोंकों मे विद्यमान चरणों पर श्वेताम्वरों ने अपनी ओर से चरणों को बरलकंर अपने मनो नीत लेख बनाये हैं। ” सगवान पाश्वनाथ की वेदीं पर सन्‌ १७६० ई०» क्रा लेख है। इसके विषय मे न्यायसूत्ति मुकजी महोदय ने लिखा-था “ यह सच है कि पार्श्वचाथ जी की বিলাল बेदी का लेख विल्कुल भूठा है, कारण उसमें १७६० ई» अंकित है, जब कि वह १८६७ है० या उसके लगभग लिखा गया होगा। साफ बात यह है, कि सन्‌ १८६७ मे संम्पूणे मेन्दिर विजली के गिरने के कारण नष्ट हो गया था ।” (पे० १७ ) पर्वत के सम्बन्ध में अनेक अग्रियः प्रसंग आने से जैन समाज को विपुल धन व्यय करना पडा थां। एक .वारश्री बोडसने खन्‌ १८८७ से पर्वत पर ठेके से ली हुई जसीन मे सुअरों का कारखाना खोल . दिया था। इस सम्बन्ध से १८८८ में एक पिगरी केस (?188879 483০) चलाया गया था, उससे हाईकोर्ट ने मि० वोडस पर खर्च समेत हमेशा के लिये मनाई के हुकुम की डिगरी करदी थी। . पेनीटोरियम योजना सन २६०७ में यह विचार चला था कि पहाड़ पर सेनीटोश्यिम बनाया जाय । यह योजना हजारीबाग जिले के डिप्टीकृमिश्नर श्री केरी (0५7८७) ने की थी । उस समय दिगम्बरों और श्वेताम्बरों ने मिलकर




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