पुरुषार्थसिद्धधूपाय | Purusharthasiddhupaya

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Purusharthasiddhupaya by प० मुन्नालाल रांधेलीय वर्णी - Pt. Munnalal Randheleey Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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তত १, सम्यग्दशनाधिकार घच्‌ वस्तुक स्वभाव अनेक तरहक होते है ! जेसे कि--(१) उत्पाद-व्यय-घ्रौग्य, यह वस्तुका स्वभाव है (२) गुण व पर्याय, वस्तुका स्वभाव है । (३) परिणमनशीरुता, यह भी वस्तुका स्वभाव है । इसीमे नित्य व अनित्य स्वभाव भी आ जाता है ! फलतः पुष्करपलछाशवत्‌ निर्लेष' ( तादात्स्य- रहित ) प्रत्येक वस्तुका स्वभाव होनेसे ज्ञायक परज्योति भी ज्ञेयोसे भिन्न ( शुद्ध-तादात्म्यरहित } रहती है 1 तथा परज्योतिः निष््वयसे अपने ज्ञेयाकार चेतन्यको ही जानती है ओर व्यवह्‌ारसे पर- पदार्थोको यह तथ्य ( रहस्य ) भी समक्षना चाहिये, जो सत्य है । इसी तरह परज्योति ( केवल- ज्ञान ) और अहंन्तपना ( सवंज्ञवीतरागता ) यह्‌ सब पुण्यका फक है, पापक्रा फर नही है । कारण कि पापकर्मो याने घातियाकमकि क्षय होने पर ही वह अवस्था होती है, उनके उदय अस्तित्वमे नही होती जिससे उनका फर माना जाय; नही माना जा सकता 1 किन्तु वह पुण्यकर्मोका याने अघात्तिया क्मोकि उदय या अस्तित्व रहते ही होता है अतएव उनहीका फल = चाहिये, श्रममे नही पडना चाहिये 1 तथा उनकी सब गमनादि क्रिया क्षायिकौ । “ , भित्तकी अपेक्षा ) किन्तु सामान्यत स्वाभाविकी है--वस्ठस्वभावसे वैसा परिणमन होता ^ स्तु, विशेष टीकासे देख लेना चाहिये । वे सोक्षमागगके नेता ( प्राप्त करनेवाले ) है या उपदेश ले हैः सर्वज्ञ है, वीतराग है ! अतएव गमनादि सव क्रियाओके होते हुए भी वीतराग- नतासे कर्मबंध नही करते, न नया भव धारण करते है यह फल होता है । विरोष-आचायं महाराजने परज्योति ( केवलज्ञान ) की महिमा उक्त इलोक द्वारा \ परूपसे एकप्रकारकी बतलाई है गौर वह॒ इस प्रकारकी कि वह॒ परमज्योति युगपत्‌ ( एक হী) सम्पूणं पदार्थोको उनकी चेकालिक अनन्त पर्यायो सहित हस्तामख्कवत्‌ स्पष्ट यथार्थ नती है 1 इत्यादि शेष सब यथाशक्ति ऊपर दर्शाया गया है 1 अर्थात्‌ परज्योत्तिमे अनेक प्रकारकी নাই ই तथापि आचायंने श्थाकीतङ्लन्याय'से एक अद्धितीयपना मुख्यतासे बता दिया है । न इससे सिफ उत्तनी ही महिमा नही समझना चाहिये, अपितु और भी अनेक महिमाएँ समझना ये, अनेकान्तदुष्टिसि विचार किया जाता है। अस्तु, सबसे बडी सख्या ( राशि ) केवलज्ञानके . ओ गमी प्रतिच्छंदों ( अशो ) कौ है, वह अनतानत है । उनसे कम सस्या, पदार्थो ( विषयो ) को ह्‌, वह्‌ अनंत है तथा उन पदाथकि वाचक शाब्दो ( अक्षरों) की सख्या ओर भी कम है ( सीमित है ) एवं पदो, वाक्यो मौर शास्नोकी सख्या बहुत कम है 1 अनत अनेक प्रकारके होते ह दरन्यगत, गुणगत, पर्यायगत इत्यादि । परज्योत्तिके प्रति अस्था ओर विनय प्रकट करनेके पक्वात्‌ आचायं अनेकान्तको वनाम स्याद्रादरूपं जिनवाणीको भी साध्यका सावक होनेसे नमस्कार करते ह-- १९ पुण्यफला अरहन्ता तेसि किरिया पुणो हि ओदयिया । मोहादीहि विर्रहिदा तम्हा सा खायगत्ति मदा 11४५] -गाया न° ४५ प्रवचनसारः




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