राजस्थान में हिंदी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज | Rajasthan Mein Hindi Ke Hastalikhit Grantho Ki Khoj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৫৯. मूसक राजस्थान में हिन्दी-साहित्य विषयक शोध । ईिन्दी साहिस्य के निर्माण, विकास एवं प्रसार में भारतवर्ष के ज्ञिग जिन प्रास्तों ने भाग लिया है उसमें राजस्थान का अपना एक विशेष स्थान है । राजस्थास- बासियों दो इस बात का गर्व हूँ कि उनके कवि-कोबिदों ने हिन्दी साहित्य के प्रायः सभी अंगों पर अमेक प्रथों की रचनाकर उनके द्वारा हिन्दी के भंडार को मश है। राजश्थान में सैंकड़ों ही ऐसे प्रतिभाशाली साहित्यकार दो गये हैं. जिनके प्रथ चिम्वी सादित्य की अमूल्य संपत्ति और हिन्दी भाषा-माषियों के गौरव की वस्तु माने जाते हैं। হিম के आदि काल का इतिहास तो एक तरह से राजस्थान के कवियों ही की क्ृतियों का इतिहास है। राजस्थान का डिगल साहित्य, जो बस्ठुतः हिन्दू जाति का अति- निधि साहित्य कद्दा जा सकता है और जिसमें हिन्दू संस्कृति की म्लक सुरक्षित है, यहां के साहित्यिकों को हिग्दी सादित्य वो अपनी एक अपू्े देन है । यह समस्त साहित्य बहुत सजीव, बहुत उच्ज्वल् एवं बहुत सार्मिक है और साहिरियक दृष्टि से गहस्पूर्ण होने के साध साथ इतिहास और भाषा-शास्त्र की दृष्टि से भी अत्यंत उप- योगी है। लेकिन खेद है. कि दिन्दी के विद्वानों ने इसे श्रभी तक उपेक्षा के भाव से देखा है। परिशामस्वरूप इसका एक बहुत बड़ा अ्रेश तो न४्ट हो गया है और थोड़ा बहुत जो चच रहा दै षह भी शनेः शमः दीमक-चूदों का आद्ार बनता जा বহাই। हिन्दी भाषा को यद अमूल्य और अवशिष्ट सादित्यिक सामग्री जो राज- स्थान मे स्थान स्यानं पर अस्तव्यस्त द्रा मे पड हई है चोर निसो मष्ट होने से बचाना दिन्दी-दिवैधियों का प्रथम आवश्यक অন্য है, भाषा की दृष्टि से चार भागों में दिभक्त हो सकतो है-- (१) डिंगल साहित्य (३२) दिंगल साहित्य (३) जैन साहित्य और (४) लोक साहित्य 1




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